Country’s age of consent for sex to be reconsidered : मुंबई। बाल विवाह निषेध अधिकारियों की नियुक्ति और प्रदर्शन के संबंध में जानकारी प्रस्तुत करने का निर्देश देने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट से एक महत्वपूर्ण अपडेट सामने आया है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने उम्र कम किए जाने को लेकर राज्य सरकार को निर्देश दिया है। इसके अनुसार, यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा (पॉक्सो) अधिनियम के तहत आरोपियों को दंडित किया जाएगा, जहां पीड़ितों के किशोर होने और सहमति से संबंध बनाने की जानकारी देने के बावजूद उन्हें सजा दी जाएगी। न्यायमूर्ति भारती डांगरे की एकल पीठ ने चिंता व्यक्त की है, क्योंकि आपराधिक मामलों की संख्या में वृद्धि हो रही है। इस आदेश को 10 जुलाई को पारित किया गया है।
यौन संबंध के लिए देश में संबंधित आयु को फिर से विचार किया जाएगा: अदालत ने कहा, “यौन स्वतंत्रता में, वांछित यौन गतिविधि में शामिल होने का अधिकार और अनाकांग्षित यौन आक्रामकता से सुरक्षित रहने का अधिकार, दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। किशोरों के अधिकारों के दोनों पहलुओं को मान्यता प्राप्त करने पर ही मानव यौन गरिमा का पूर्ण सम्मान किया जा सकता है।”
जस्टिस डांगरे ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि भारत में समय के साथ, विभिन्न कानूनों द्वारा सहमति की आयु में वृद्धि की गई है और 1940 से 2012 तक यह 16 वर्ष रखी गई थी। तब पॉक्सो एक्ट ने इसे 18 वर्ष कर दिया था। उन्होंने कहा, “यह संभवतः विश्व स्तर पर सहमति की सबसे अधिकांश आयु में से एक है, क्योंकि अधिकांश देशों ने सहमति की आयु 14 से 16 वर्ष के बीच निर्धारित की है।” अदालत ने कहा, “जर्मनी, इटली, पुर्तगाल, हंगरी आदि देशों में 14 साल की आयु के बच्चों को सेक्स के लिए सहमति देने को सक्षम माना जाता है।” उन्होंने कहा कि इंग्लैंड, वेल्स, बांग्लादेश, और श्रीलंका में भी सहमति की आयु 16 वर्ष की निर्धारित की गई है। जापान में यह 13 साल है।
कोर्ट ने आगे कहा कि भारत के मामले में, बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के अनुसार पुरुष और महिला के लिए विवाह की आयु 21 और 18 वर्ष तय की गई है। बच्चे शब्द की परिभाषा कानून के अनुसार अलग-अलग होती है। कानून और पॉक्सो एक्ट के अनुसार, 18 वर्ष से कम उम्र के किशोरों को बच्चा माना जाता है और इससे उनके साथ सभी यौन गतिविधियाँ अपराध मानी जाती हैं, भले ही यह सहमति से की गई हो। बेंच ने जोर देकर कहा कि सहमति की उम्र को शादी की उम्र से अलग किया जाना चाहिए, क्योंकि यौन क्रियाएँ केवल शादी के दायरे में ही सीमित नहीं होती हैं, और न केवल समाज, बल्कि न्यायिक सिस्टम को भी इस महत्वपूर्ण पहलू पर ध्यान देना चाहिए।