बीजापुर |
स्वास्थ्य विभाग की टीम 2 दिन तक गांव में रही। यहां रहकर लोगों का इलाज किया गया।
बस्तर में बीजापुर जिले के इंद्रावती नदी पार बसे गांवों के करीब ३०० ग्रामीणों का खुले आसमान के नीचे इलाज किया गया। नक्सलगढ़ गांव में २ दिनों तक स्वास्थ्य विभाग की टीम ने पेड़ के नीचे डेरा जमाए रखा। यहां इलाज करवाने पहुंचे करीब ४० ग्रामीण ऐसे थे, जिन्हें पेड़ की टहनी (डाली) के सहारे ग्लूकोज चढ़ाई गई, क्योंकि गांव में न तो अस्पताल है और न ही स्वास्थ्य सुविधा।
दरअसल, स्वास्थ्य विभाग की टीम को जानकारी मिली थी कि इंद्रावती नदी पार के ताकिलोड समेत आस-पास के अन्य पंचायतों के सैकड़ों ग्रामीण बीमार हैं। इस वजह से स्वास्थ्य विभाग की टीम २ दिन पहले (१७-१८ मई) को ताकिलोड गांव पहुंची।
20 किलोमीटर पैदल सफर कर पहुंचे नक्सलगढ़
बताया जाता है कि गांव तक पहुंचना भी आसान नहीं था। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग की टीम ने पहले भैरमगढ़ से होते हुए इंद्रावती नदी को लकड़ी की छोटी नाव से पार किया। फिर करीब २० किलोमीटर पैदल सफर तय कर ताकिलोड गांव पहुंची।
2 पेड़ की टहनियों पर रस्सी बांधी गई। उसी रस्सी पर ग्लूकोज की बोतल को फंसाया गया था।
5 से ज्यादा गांवों के ग्रामीण हुए थे शामिल
यहां एक पेड़ के नीचे शिविर लगाया गया। स्वास्थ्य विभाग की टीम ने वहां त्रिपाल बिछाई और फिर उसी के ऊपर सारा किट रखकर अस्पताल खोल दिया। इस शिविर में ताकिलोड, अबूझमाड़, पल्लेवाया, गोंडमेटा, वेड़मा समेत कुछ और गांव के करीब ३०० ग्रामीण पहुंचे। जिनका इलाज किया गया।
इनमें कई ग्रामीण एनीमिया पीड़ित थे। कईयों को सर्दी-खांसी, बुखार, बीपी, शुगर की समस्या थी। साथ ही कुछ ग्रामीण अन्य गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। स्वास्थ्य विभाग की टीम ने सभी ग्रामीणों का उपचार किया।
30 को भेजा अस्पताल
करीब 40 ग्रामीणों को दो पेड़ों के बीच टहनी पर रस्सी बांधकर ग्लूकोज चढ़ाई गई। न तो बेड था, न ही गद्दा और बिजली। बल्कि खुले आसमान के नीचे जमीन में त्रिपाल बिछाकर ग्रामीणों को उसी पर लिटाया और ग्लूकोज चढ़ाई गईं। वहीं कुछ ऐसे ३० ग्रामीण भी थे, जो किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। इन ग्रामीणों को स्वास्थ्य विभाग की टीम ने भैरमगढ़ अस्पताल और बीजापुर जिला अस्पताल पहुंचाया।
5 से ज्यादा गांव के लोग इलाज करवाने पहुंचे थे। त्रिपाल के ऊपर लिटाकर मरीजों का इलाज किया गया।
बेहद संवेदनशील इलाका
स्वास्थ विभाग के कर्मचारियों ने बताया कि, वे करीब २ दिनों तक नक्सलगढ़ गांव में थे। इलाका बेहद संवेदनशील और पहुंचविहीन है। न तो नेटवर्क है और न ही सड़क। जंगल के बीच बसे इन गांवों में स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाना कठिन है। स्वास्थ विभाग के कर्मचारियों का कहना है कि ऐसा नहीं है कि इलाके में कभी स्वास्थ्य कर्मी नहीं पहुंचते, समय-समय पर ANM और RHO जाते रहते हैं। लेकिन इलाका काफी बड़ा है। इसलिए हर किसी तक इलाज पहुंचाना संभव नहीं होता।
झाड़-फू्ंक के सहारे ग्रामीण
इलाके के ग्रामीणों ने बताया कि बारिश के दिनों में भी इंद्रावती नदी उफान पर रहती है। साथ ही अस्पताल तक पहुंचना भी संभव नहीं हो पाता। इसलिए किसी भी तरह की बीमारी के लिए झाड़-फूंक करवाते हैं। जब ज्यादा तकलीफ होती है तब किसी तरह से अस्पताल पहुंचते हैं। मगर बारिश के ४ महीने स्थिति और बदतर हो जाती है। क्योंकि इंद्रावती नदी उफान पर होती है, जिसे नाव के सहारे पार करना संभव नहीं होता।
पुल निर्माण का चल रहा काम
इंद्रावती नदी पर पुल निर्माण का काम भी चल रहा है। ऐसा बताया जा रहा है कि अगले साल बारिश से पहले पुल निर्माण का काम लगभग पूरा कर लिया जाएगा। जिससे इलाके के ग्रामीणों को राहत भी मिलेगी। हालांकि, दंतेवाड़ा के छिंदनार-पाहुरनार घाट पर पुल बनकर तैयार हो गया है। लेकिन बीजापुर के फुंडरी और एक अन्य जगह में पुल निर्माण का काम जारी है।