हुक्के में सिगरेट से 25 गुना ज्यादा टार और 10 गुना धुएं से लंग्स कैंसर का खतरा अधिक होता है।

ये 300 फ्लेवर में उपलब्ध हैं, और इनमें भी निकोटिन होता है।

हाथों में हुक्के का पाइप, सुलगता कोयला और गुदगुदाते युवा। कभी गांवों में बड़े-बुजुर्गों के बीच चौपाल की शान समझा जाने वाला हुक्का अपने मॉडर्न अवतार में शहर पहुंचकर कब बार और पब में टीनेजर्स की पसंद बन गया, पता ही नहीं चला।

केवल भारत और मध्य पूर्व के देशों में ही नहीं, बल्कि अमेरिका से लेकर इंग्लैंड तक फ्लेवर्ड हुक्का ट्रेंड में है। हुक्का बार, हुक्का लाउंज, हुक्का डेन, हुक्का कैफे तो कहीं शीशा बार में कश लगाते युवा। मेट्रो सिटीज में ही नहीं, छोटे शहरों में भी ऐसे लाउंज हैं, जहां बैन होने के बावजूद हुक्का परोसा जा रहा है। टीनेजर्स और युवाओं में हुक्के के प्रति अधिक क्रेज है। इसके उपयोग से ओरल कैंसर, आंतों का कैंसर, फेफड़ों का कैंसर, गले का कैंसर हो रहा है। टीबी और हेपेटाइटिस जैसी संक्रामक बीमारियां भी हुक्का से फैल रही हैं।

युवाओं की पहली पसंद- फ्लेवर्ड हुक्का

हुक्का चारकोल, टॉन्ग, पान, कीवी मिंट, ब्रेन फ्रीजर… ये सभी नाम हुक्के के फ्लेवर के हैं। कुल 6 पैक, वजन 100 ग्राम, कीमत- 225 रुपए। निकोटिन और टोबैको फ्री से लेकर डबल ऐपल, चॉकलेट, पान रस, दुबई स्पेशल, मिक्स फ्रूट, वॉटरमेलन, ब्लूबेरी पाई, स्ट्रॉबेरी, क्रीम, सेब, मिंट, चेरी, कोकोनट, कॉफी, वनीला जैसे फ्लेवर भी मौजूद हैं। आज हुक्का खरीदना इतना आसान है कि चाहें तो हर्बल हुक्का ऑनलाइन ऑर्डर कीजिए और घर में बैठकर सुलगाइए।

जैसे नई बोतल में पुरानी शराब, पीने वालों को खूब भाती है वैसे ही युवाओं को हुक्के के फ्लेवर पसंद आते हैं और हर्बल हुक्के के नाम पर उन्हें लुभाया भी जाता है। स्कूल-कॉलेज जाने वाले लड़कों को भी लगता है कि फ्लेवर्ड हुक्के में तंबाकू नहीं है, इससे सेहत को कोई नुकसान नहीं होगा। सिगरेट पीने से कैंसर होता है लेकिन हुक्का तो पी ही सकते हैं, इस सोच के साथ युवा आंखें बंद कर धुआं उड़ाते हैं।

नेचर पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 10 सालों में स्मोकिंग करने वालों की गिनती में 40% की गिरावट आई है, लेकिन वॉटर पाइप, शीशा या निकोटिन हुक्के के इस्तेमाल में 96% की बढ़ोतरी हुई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि 10वीं-12वीं में पढ़ने वाले 18% छात्रों ने साल में कम से कम एक बार हुक्का पीने की बात स्वीकारी है।

हुक्के को लेकर कई तरह के मिथ हैं, आइए इसे जानते हैं

शादी-बारात में स्टेटस सिंबल बना हुक्का बार

हुक्का सिर्फ बार और रेस्टोरेंट तक ही नहीं सिमटा हुआ है, बल्कि शादी-ब्याह में यह स्टेटस सिंबल भी बन गया है। बैंक्वेट हॉल में शादी की शहनाई के साथ हुक्का भी गुड़गुड़ाया जाता है। हाल ही में इंस्टाग्राम पर एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें दूल्हे-दुल्हन का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें दोनों स्टेज पर ही हुक्का के कश लेते नजर आ रहे थे।

टर्बनेटर के नाम से मशहूर क्रिकेटर हरभजन सिंह की रिंग सेरेमनी में मेहमानों को 113 तरह के हुक्के परोसे गए थे। 2015 में हुई यह शादी हुक्के के चलते विवादों में रही थी।

SIPHER (स्ट्रैटिजिक इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ एजुकेशन एंड रिसर्च) के प्रेसिडेंट डॉ. राकेश गुप्ता बताते हैं कि थीम बेस्ड शादियों के बैंक्वेट हॉल में एंटीक सोफा, कालीन, लालटेन, घास-फूस की बनी झोपड़ी और हुक्का देखने को मिलता है। शादी से पहले हल्दी और मेहंदी की रस्म में भी हुक्का खूब चलता है।

दिल्ली में कई जगहों पर अब हुक्का केटरिंग सर्विसेज चल रही हैं। साउथ दिल्ली के छतरपुर में ऐसी ही एक केटरिंग सर्विस बताती है कि हुक्का भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है और शादियों में इसे शामिल करके आप इसे यादगार बना सकते हैं। वे बताते हैं कि इस समय समर 69, ब्रेन फ्रीजर, ऐपल, कीवी और पान फ्लेवर लोगों के पसंदीदा हैं।

युवाओं को हुक्का बार क्यों अपनी ओर खींचता है?

हुक्के का फ्लेवर युवाओं को अपनी ओर खींचता है। हुक्के से निकलने वाला धुआं उन युवाओं को ज्यादा आकर्षित करता है जो शराब-सिगरेट नहीं पीते। पीजीआई चंडीगढ़ के कम्युनिटी हेल्थ के प्रोफेसर डॉ. सोनू गोयल बताते हैं कि अधिकांश लोग यह समझते हैं कि सिगरेट के मुकाबले हुक्का ज्यादा नुकसान नहीं करता। सोसाइटी में सिगरेट पीने को अच्छा नहीं माना जाता है, लेकिन हुक्के को उस बुरी नजर से नहीं देखा जाता। दूसरी बात, सिगरेट स्मोकिंग पब्लिक प्लेस पर बैन है, लेकिन हर जगह स्मोकिंग जोन नहीं मिलते।

लेकिन हुक्के के लिए तो बड़े-बड़े बार और लाउंज होते हैं जहां खुशनुमा माहौल होता है, एक्स्ट्रा प्राइवेसी मिलती है, आपकी पसंद का म्यूजिक बजता है, दोस्तों के साथ समय मिलकर समय बिताने और खाने-पीने का भी इंतजाम होता है। यही कारण है कि टीनेजर्स हुक्के की ओर आकर्षित होते हैं।

अलग-अलग फ्लेवर में मिल रहे हुक्के में क्या होता है इसे ग्राफिक के जरिए जानते हैं-

सिगरेट से दोगुना निकोटिन फेफड़ों में जाता है

एक सिगरेट 8-10 कश में पी जा सकती है। लेकिन जब कोई लाउंज या बार में हुक्का सेशन में बैठता है तो औसतन 100 से 200 कश ले लेता है। यानी सिगरेट से डेढ़ या दोगुना ज्यादा निकोटीन हमारे फेफड़ों में पहुंचता है। चूंकि धुंआ पानी के जरिए आता है, इसलिए यह अधिक मात्रा में फेफड़ों तक पहुंचता है। एक घंटे के हुक्का सेशन में 90,000 मिलीलीटर धुंआ हमारे फेफड़ों में पहुंचता है, जबकि एक सिगरेट से 500–600 मिलीलीटर धुंआं शरीर के अंदर जाता है।

गुरुग्राम में मारेंगो एशिया हॉस्पिटल के लंग्स ट्रांसप्लांट और थोरासिक सर्जन डॉ. कामरान अली बताते हैं कि हुक्के में सिगरेट के मुकाबले 9 से 10 गुना ज्यादा कार्बन मोनोक्साइड इनहेल होती है।

किसी हुक्का बार में हुक्का पीता व्यक्ति एक या दो मिनट में हुक्का नहीं छोड़ता है, बल्कि घंटों तक पीता रहता है। यानी घंटों तक निकोटीन और कार्बन मोनोक्साइड फेफड़ों में पहुंचते रहते हैं। यह धुंआ केवल हमारे अंदर ही नहीं जाता, बल्कि लाउंज या हुक्का बार में बैठे कई लोगों की सांस के साथ उनके फेफड़ों में जाता है। इस धुंए में 82 जहरीले केमिकल्स पाए गए हैं, जिनसे कैंसर हो सकता है। चंडीगढ़ के पंचकूला में टोबैको कंट्रोल लैब ने हुक्के के धुंए में टॉक्सिक केमिकल्स होने की पुष्टि की है।

हुक्का शेयर करने वालों के बीच बीमारी फैलती है

लाउंज में लोग हुक्का शेयर करते हैं, एक ही पाइप को कई लोग मुंह में लेकर पीते हैं। इससे इन्फेक्शन बढ़ने का खतरा अधिक होता है। कई जगहों पर कोरोना वायरस के फैलने का कारण भी इसे माना गया है। 2020 में दिल्ली में कोविड वायरस को फैलने से रोकने के लिए हुक्का बैन किया गया था। हुक्के में निकोटीन हो या न हो, इसके इस्तेमाल को इसलिए बंद किया गया क्योंकि लाउंज में इसे शेयर करके पिया जाता है। इसलिए रेस्टोरेंट, होटल, बार, पब्स, डिस्कोथेक में इस पर रोक लगाई गई।

डॉ. सोनू गोयल बताते हैं कि लोग लाउंज में हुक्का शेयर करके ही पीते हैं, जिससे गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल, टीबी और सांस से जुड़ी बीमारियों के मामले अधिक देखे जाते हैं। हुक्के के माउथपीस, होज और पानी में इन संक्रामक बीमारियों के बैक्टीरिया छिपे हो सकते हैं।

लंग्स कैंसर का खतरा बढ़ जाता है

सिगरेट से ज्यादा खतरनाक है हुक्का पीना। हुक्का पीने से लंग्स की लाइनिंग, जिसे सिलेरी लाइनिंग कहते हैं, डैमेज होने लगती है, जिसका असर सिगरेट के नकारात्मक प्रभाव की तरह होता है। फेफड़ों में कार्बन मोनोऑक्साइड जमा होती जाती है। घंटों हुक्का पीने से COPD (क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव प्लमनरी डिजीज) की आशंका बढ़ जाती है। जिन्होंने कम उम्र से ही हुक्का पीना शुरू किया है और सालों से पी रहे हैं, उनमें फेफड़ों का कैंसर होने का रिस्क अधिक होता है। इसके साथ ही, गैस्ट्रिक कैंसर और सांस की नली का कैंसर भी हो सकता है।

किशोरों में ब्रेन का विकास रुक जाता है

अमेरिका में हुई एक स्टडी के अनुसार, जो छोटी उम्र से हुक्का पीना शुरू करते हैं, उनके मस्तिष्क का विकास ठीक से नहीं हो पाता। किशोरावस्था तक ब्रेन का विकास होता रहता है, लेकिन हुक्के से मिलने वाले अत्यधिक निकोटिन से इसका नियमित विकास प्रतिबंधित हो जाता है। यह निकोटिन दिमाग में कुछ प्रक्रियाओं को प्रभावित करके विकास को रोकता है और यह परिणामस्वरूप युवा आदमी या युवती के मस्तिष्क को पूरी तरह से सम्पन्न नहीं होने देता है।

क्रॉनिक सिगरेट स्मोकर्स बनते हैं

डॉ. कामरान कहते हैं कि जो बच्चे कम उम्र में ही हुक्का पीना शुरू करते हैं, वे आगे चलकर क्रॉनिक सिगेरेट स्मोकर्स बन सकते हैं। यदि कोई 13-14 साल की उम्र से ही हुक्का पी रहा है, तो 20-25 की उम्र आते-आते वह बेहद सिगरेट पीना शुरू कर सकता है। हुक्का आदि तंबाकू से मिलने वाली निकोटिन की अधिकता के कारण यह आदत धीरे-धीरे धूम्रपान की ओर ले जाती है और यह स्वाभाविक रूप से उन्हें सिगरेट स्मोकिंग की ओर आकर्षित कर सकती है।

हुक्का सिगरेट से भी ज्यादा खतरनाक है, इस ग्राफिक से समझते हैं

कई राज्यों में बैन के बावजूद धड़ल्ले से चल रहे हुक्का बार

गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब, झारखंड में हुक्का बार पर प्रतिबंध लगा हुआ है। पश्चिम बंगाल में भी हुक्का बार पर प्रतिबंध था, हालांकि रेस्टोरेंट एसोसिएशन की याचिका के बाद हाई कोर्ट ने बैन पर स्थगिति लगा दी है।

तमिलनाडु में कैबिनेट द्वारा हुक्का बारों को पूर्णतया प्रतिबंधित करने का विधेयक पारित किया गया है। इस विधेयक के अनुसार, हुक्का बार के संचालकों को तीन वर्ष तक की कारावास और 50,000 रुपये तक का जुर्माना भी हो सकता है। दिल्ली और उत्तर प्रदेश में कोविड-19 महामारी के समय हुक्का बारों को पूर्णतया प्रतिबंधित किया गया था और इसके लिए नए लाइसेंस भी नहीं दिए जाते थे। हालांकि, इन सभी कदमों के बावजूद कुछ रेस्टोरेंटों में अभी भी हुक्का बार चल रहे हैं।

इसे दिल्ली के गोविंदपुरी इलाके में हुई घटना से समझ सकते हैं-

6 मई को एक हुक्का बार में, 17 साल के एक लड़के को गोली मारकर हत्या कर दी गई। उस दिन उसने अपने दोस्तों के साथ बर्थडे सेलिब्रेशन के लिए वहां पहुंचा था। तभी एक दूसरे लड़के आये और उसके सिर पर गोली मार दी। यह हुक्का बार अवैध रूप से चल रहा था।

हुक्का बार के लिए नहीं है गाइडलाइंस

देश में टोबैको के इस्तेमाल को रोकने के लिए कोटपा (द सिगरेट्स एंड अदर टोबैको प्रोडक्ट्स एक्ट) कानून लागू है, लेकिन हुक्का बार चलाने वाले यह दलील देते हैं कि हुक्के में किसी तरह का निकोटीन नहीं होता है। इस वजह से वे कानून से बच निकलते हैं। अमेरिका में फूड एंड ड्रग एसोसिएशन (FDA) ने हुक्के के लिए अलग से गाइडलाइन बनाई है, जबकि भारत में कोटपा के अलावा कोई अलग से गाइडलाइन नहीं है।

डॉ. सोनू गोयल बताते हैं कि कोटपा कानून की धारा 7, 8 और 9 को भी लागू किया जाए तो हुक्के पर भी रोक लगाई जा सकती है। इस कानून के अनुसार, सिगरेट की तरह हुक्के पर भी बताना होगा कि इसमें निकोटिन की कितनी मात्रा होती है। तंबाकू से कैंसर होता है, यह हुक्के पर भी लिखा होना चाहिए।

हुक्का बार में वेंटिलेशन, एंट्री करने वालों की उम्र, टैक्स जैसी नियमावली बनाने की जरूरत है।

हुक्का बार पर कार्रवाई के लिए क्या-क्या कानूनी प्रावधान हैं

सीआरपीसी 144 का उल्लंघन: पुलिस एफआईआर दर्ज कर सामग्री जब्त कर सकती है। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015: हुक्का लाउंज में नाबालिग के संपर्क में आने पर कार्रवाई हो सकती है। द पॉइजनस एक्ट, 1919: ड्रग इंस्पेक्टर और पुलिस कार्रवाई कर सकते हैं। COTPA की धारा 4, 5, 6 और 7: इन धाराओं में कार्रवाई हो सकती है। फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट, 2006: फ्लेवर्ड टोबैको प्राप्ति पर कार्रवाई की जा सकती है। ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940: निकोटीन के सैंपल लेने पर ड्रग इंस्पेक्टर कार्रवाई कर सकते हैं। IPC की धारा 268, 269 और 278: पुलिस इसमें कार्रवाई कर सकती है। ई-हुक्का का इस्तेमाल और बिक्री: पहली बार पकड़े जाने पर एक साल तक की जेल या एक लाख तक का जुर्माना या दोनों एक साथ। दोबारा पकड़े जाने पर तीन साल की जेल, पांच लाख तक का जुर्माना।

सोर्स: SIPHER (स्ट्रैटिजिक इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ एजुकेशन एंड रिसर्च), PIB

नेशनल सैंपल सर्वे 2016 के अनुसार, 6.4% लोग हुक्का पीते हैं। मार्केट में 300 से अधिक फ्लेवर वाले हुक्के मिलते हैं। डिजाइनर हुक्कों की भरमार है, जो लोहे, कांसे, पीतल, ग्लास, सेरामिक से बने होते हैं। इनमें सिलिकॉन बोल, मल्टी कलर LED लाइट और रिमोट कंट्रोल वाले हुक्के भी होते हैं। डॉ. राकेश गुप्ता बताते हैं कि हुक्का कोई भी सेहत के लिए सुरक्षित नहीं होता है। ई-हुक्का को लोग सुरक्षित मानते हैं, लेकिन इसमें फ्लेवर्ड टोबैको का उपयोग होता है।

ग्राफिक्स: सत्यम परिडा

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