अरनपुर के पास उस बारूदी सुरंग से जिसके धमाके से 11 लोग शहीद हुए थे, उसका फोरेंसिक जांच स्पष्ट करता है कि नक्सलवादियों ने उसे सड़क बनाने के दौरान लगभग तीन साल पहले लगाया था और ऊपर डामरीकरण किया था। उसके तार निकाले गए थे ताकि वे पेड़ों के पास छोड़े जा सकें और नक्सलियों को इसकी जानकारी न हो।
इस तथ्य के खुलासे के बाद भास्कर की पड़ताल में यह बात सामने आई कि नक्सलियों ने बस्तर समेत नक्सल प्रभावित १९ जिलों में २००१ से अब तक यानी २२ वर्षों में १०९४ बारुदी सुरंगों के धमाके किए हैं। लेकिन फोर्स ने भी विस्फोट से पहले सड़कों तथा संवेदनशील जगह जमीन के नीचे से ३,६३७ बारुदी सुरंगें निकालकर नष्ट कर दी हैं।
भास्कर ने बस्तर में बरसों लैंडमाइन और विस्फोटक विरोधी ऑपरेशंस में लगे विशेषज्ञों से बात की तो उन्होंने बताया कि नक्सली इतनी प्लानिंग से सुरंगें बिछाकर तार छोड़ देते हैं ताकि 5 साल बाद भी इनका इस्तेमाल किया जा सके। सुरंगें जमीन में 4-5 फुट गहराई में बिछाते हैं, ताकि इन्हें ढूंढना आसान न हो। सुरंगे तलाशने का अब तक कोई कंक्रीट सिस्टम नहीं बना है। गहराई ज्यादा होने के कारण हाई मेटल डिटेक्टर भी खोज नहीं पाते और नक्सली इसी का फायदा उठाकर विस्फोट कर रहे हैं।
अब तक की पुलिस और विशेषज्ञों की जांच से पता चला है कि नक्सली आमतौर पर नई सड़कों या सड़कों की मरम्मत के दौरान बारूदी सुरंगों की स्थापना करते हैं। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सड़क निर्माण के दौरान उन्हें सुरंग बिछाने का बहुत सुविधाजनक मौका मिलता है।
सड़कों के लिए खोदी गई जगह पर बारूद बिछाने के लिए खुदाई आसान होती है, और इन्हें ढूंढना भी मुश्किल होता है। नक्सलियों को गड्ढों में बारूद भरकर वहीं किसी पेड़ पर निशान लगाने का मौका मिलता है, ताकि वे कई साल बाद भी सुरंग के तारों का पता लगा सकें।
बारूदी सुरंग लगाने के बाद तार जंगल में 40-50 फीट दूर छिप जाते हैं, जिसे ढूंढना मुश्किल होता है
एक्सपर्ट्स के अनुसार, नक्सलियों ने बारूदी विस्फोट के लिए जानकारों को संगठित ढंग से रखा हुआ है। ये जानकार सुरंगों को बिछाकर बैटरी लगाने के लिए तार निकालते हैं। इन तारों को संकरें गड्ढे में दबाकर, वे जंगल के दूर-दूर तक पहुंचा देते हैं, जिसे खोजना काफी मुश्किल होता है। बारुदी सुरंग में रखे गए इन तारों को पेड़ की जड़ों के करीब छिपाया जाता है ताकि उन्हें भी खोजना अदभुत मुश्किल होता है। जब नक्सलियों को विस्फोट करना होता है, तब वे इन तारों को बैटरी से जोड़कर इस्तेमाल करते हैं।
नक्सलियों द्वारा बारूदी सुरंग में विस्फोटक को सुरक्षित रखने के लिए देसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। बारूद को पानी से बचाने के लिए मोटे प्लास्टिक में तीन-चार लेयरों से लपेटा जाता है। उसे अच्छी तरह से लपेटने के बाद, उसे माइश्चर से बचाने के लिए मोम और गम से पैक किया जाता है। विशेषज्ञों ने बताया कि बारूद को एक निर्धारित गहराई में रखने से धमाका ज्यादा होता है। इसी कारण नक्सली इसे 4 से 5 फीट गहराई में रखते हैं।
१३६९ जवानों ने अपनी जान दी है
अब तक वारदातों में जिला पुलिस, सीएएफ, एसटीएफ, एसपीओ, नगर सैनिक, सीआरपीएफ, बीएसएफ और अन्य फोर्स के 1369 जवान शहीद हो चुके हैं। इनमें नगा बटालियन के जवान भी शामिल हैं। सबसे ज्यादा शहादत 2007 में हुई थी, उस समय 200 जवान शहीद हुए थे।
हर साल बस्तर में 120-130 बारूदी सुरंगें खोजी जाती हैं। ऑपरेशन के दौरान नक्सलियों को पकड़ा जाता है, जिनके माध्यम से यह पता लगता है। सूचना भी निरंतर आती रहती है। -सुंदरराज पी, आईजी बस्तर