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स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के क्लारिफिकेशन की मांग की है। उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को यह समझाया था कि वे लोन लेने वाले ग्राहकों के अकाउंट को फ्रॉड की कैटेगरी में नहीं डाल सकते हैं जब तक कि उन्हें सुनवाई नहीं दी जाती। SBI ने याचिका दायर करके यह दावा किया है कि फैसले का गलत मतलब निकाला जा सकता है और सुनवाई को व्यक्तिगत सुनवाई माना जा सकता है। यह डिफॉल्टर्स के लिए भी एक चिंता का विषय है, जिनके डिफॉल्ट ने बैंकों की फाइनेंशियल कंडीशन को कमजोर किया है। इससे देश की अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ा है। SBI ने याचिका में यह भी कहा है कि डिफॉल्टर कस्टमर्स व्यक्तिगत सुनवाई को लेकर सवाल उठा सकते हैं और निर्धारित समय सीमा के अभाव में फैसलों में देरी कर सकते हैं।
क्या सुप्रीम कोर्ट ने अकाउंट्स का क्लासिफिकेशन करने पर फैसला सुनाया था? पिछले महीने, सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाया था जिसमें उन्होंने फ्रॉड के रूप में अकाउंट्स का क्लासिफिकेशन करने से बोरोअर्स यानी लोन लेने वालों की लाइफ पर बुरा असर पड़ता है इसलिए ऐसे व्यक्तियों को सुनवाई का मौका दिया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऑडी ऑल्टरम पार्टम के प्रिंसिपल को भी पढ़ा जाए। ऑडी अल्टरम पार्टेम का मतलब नेचुरल जस्टिस का प्रिंसिपल है। इसके तहत कोई भी व्यक्ति बिना सुनवाई के अपराधी घोषित नहीं किया जाएगा। इस प्रिंसिपल में हर व्यक्ति को सुनवाई का मौका मिलता है।
यह फैसला एक याचिका पर सुनाया गया था जिसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने दाखिल किया था। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ औरजस्टिस हेमा कोहली की अध्यक्षता वाली बेंच ने 2020 में तेलंगाना हाई कोर्ट के दिए गए फैसले को सही माना था।
वास्तव में, एसबीआई ने तेलंगाना हाई कोर्ट के एक फैसले के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी। साल 2020 में तेलंगाना हाई कोर्ट ने राजेश अग्रवाल की याचिका पर फैसला सुनाया था, जिसमें यह निर्णय दिया गया था कि किसी भी खाते को फ्रॉड के तौर पर घोषित करने से पहले खाताधारक को एक सुनवाई का मौका देना चाहिए।