बिलासपुर। सुहागिनों ने गुरुवार को बड़े उत्साह के साथ वट सावित्री का पर्व मनाया। विधिपूर्वक वट वृक्ष की पूजा-अर्चना कर और रक्षा सूत्र बांधकर अखंड सौभाग्य की कामना की। सोलह श्रृंगार करके आई महिलाओं ने बरगद के पेड़ के नीचे सत्यवान-सावित्री की कथा सुनी।
ऐसा माना जाता है कि इस व्रत से दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है और घर में सुख-शांति का वास होता है। संस्कारधानी में वट सावित्री पर्व को लेकर सुहागिनों के चेहरों पर खुशी साफ दिख रही थी। भक्तिमय माहौल में शहर के विभिन्न स्थानों और मंदिरों में पूजा-अर्चना की गई। रेलवे कॉलोनी के श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर, सरकंडा, मंगला, तिफरा सहित सभी प्रमुख स्थानों पर जहां वट वृक्ष थे, वहां सुहागिनों ने पूजा की। सुबह से ही नगर के वट वृक्षों की पूजा करने के लिए बड़ी संख्या में महिलाएं एकत्रित हुईं।
सोलह श्रृंगार करके आई महिलाओं ने वट वृक्ष पर रक्षा सूत्र बांधकर अखंड सौभाग्य की कामना की। देवी मंदिरों में भक्तों की भीड़ लगी रही। रतनपुर के मां महामाया मंदिर में विशेष रूप से भारी भीड़ उमड़ी। वट वृक्षों के पास पुरोहितों द्वारा व्रत की कथा भी सुनाई जा रही थी।
मौली-धागा बांधकर की परिक्रमा
सुहागिनों ने व्रत रखने के साथ वट वृक्ष के नीचे विधि-विधान से पूजा की। उन्होंने प्रसाद के रूप में थाली में गुड़, भीगे हुए चने, आटे से बनी मिठाई, कुमकुम, रोली, मौली, पांच प्रकार के फल, पान का पत्ता, धूप, घी का दीया, एक लोटे में जल और एक हाथ का पंखा लेकर पूजा की। मौली धागे को वट वृक्ष पर लपेटते हुए परिक्रमा की। वृक्ष की जड़ में पानी चढ़ाया गया। प्रसाद चढ़ाकर और धूप-दीप जलाया गया।
वट वृक्ष को बचाने लिया संकल्प
वट सावित्री पर, एक ओर सुहागिनों ने सत्यवान-सावित्री की कथा सुनकर पति की लंबी आयु की कामना की, तो दूसरी ओर पर्यावरण संरक्षण के लिए वट वृक्ष को बचाने का संकल्प भी लिया। उन्होंने कहा कि बदलते समय के साथ पेड़ों की सुरक्षा बहुत जरूरी है। जीवनदायिनी पेड़ों से ही हमारा अस्तित्व है। पर्यावरण का संरक्षण किसी एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि हम सभी की जिम्मेदारी है।