बालोद। बालोद न्यूज़: छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में एक ऐसा गांव है जो पहले नक्सली गतिविधियों के नाम से मशहूर था। इस गांव में कभी नक्सली समर्पण व्याप्त था, और लोग ग्रामीण डर के बावजूद जीवन बिताते थे। हालांकि, आजकल इस गांव का पहचाना नाम वहाँ की महिलाओं के रूप में है, जिन्होंने अपने घर के चूल्हे से बाहर निकलकर अपनी पहचान बनाई है। वे आत्मनिर्भरता की मिसालें हैं, जो अपने क्षेत्र में निर्माण कर रही हैं। इन महिलाओं द्वारा संचालित किए जा रहे कृषि कार्यों में धान, सब्जियों के बीज, और अन्य खाद्यान्न के दाने शामिल हैं, और इस बार वे गोबर से बनी इको-फ्रेंडली राखियों का निर्माण कर रही हैं। इस प्रयास से जुड़ी महिलाएं सार्वजनिक बाजार में अच्छी आमदनी कमा रही हैं।
वास्तविकता में, यह गांव “कुमुड़कट्टा” है, जो कि जिले के आखिरी कोने में स्थित है और आदिवासी बाहुल्य ब्लॉक डौंडी और घने पहाड़ों के बीच एक छोटा सा वन्यजीव गांव है। यहां करीब 7-8 साल पहले नक्सलवादी गतिविधियों की आशंका थी। हालांकि, आजकल यहां की स्थिति बिलकुल अलग है।
5 सालों से कर रही हैं देशी राखियों का निर्माण-
गांव में, “जय मां पहाड़ों वाली स्व-सहायता समूह” की 12 महिलाएं ने एक नई पहचान बनाई हैं और खुद को आत्मनिर्भर बना लिया है। “बिहान समूह” की ये महिलाएं सरकार की विभिन्न योजनाओं और विभिन्न प्रकार की गतिविधियों से जुड़कर अच्छी आमदनी कमा रही हैं। आगामी 30 अगस्त को आने वाले रक्षाबंधन के लिए, ये महिलाएं आकर्षक और पर्यावरण-मित्र राखियां तैयार कर रही हैं। ये राखियां चीनी राखियों को मुकाबला कर रही हैं। इन विशेष राखियों की खासियत यह है कि वे सभी देशी सामग्री से बनी हैं। इन महिलाओं ने पिछले 5 सालों से इस कार्य का परिश्रम किया है, लेकिन इस बार वे गोबर से बनी राखियों का भी निर्माण कर रही हैं।
मार्केटिंग के लिए सीएम ने किया ई रिक्शा प्रदान-
इसे “इको-फ्रेंडली राखी” इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसका निर्माण घरेलू सामग्रियों से किया जा रहा है। इसमें चावल, दाल के दाने, सब्जियों के बीज, धान की बालियां, और अब गोबर से बनाई जा रही हैं। इसकी मांग न केवल बालोद जिले में ही है, बल्कि अन्य जिलों से भी आ रही है। ग्राम कोटागांव की निवासी प्रेमबती देवांगन, जो मार्केटिंग का कार्य संभालती है, बताती है कि शुरुआत में इसे बढ़ाने के लिए उन्हें प्रमोट करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी। हालांकि, आजकल हालात ऐसे हैं कि हम डिमांड की अपेक्षा पर नहीं आ सकते हैं। रोज़ाना करीब 100 से 150 राखियां ही बना पा रहे हैं। यहां की बनाई गई राखियां जिले के मुख्यालय बालोद के सी मार्ट, डौंडी, गुंडरदेही, और डौंडीलोहारा ब्लॉक के साथ-साथ आसपास के क्षेत्र और अन्य जिलों जैसे कि राजनांदगांव, डोंगरगढ़, कांकेर, और भानुप्रतापपुर में व्यापारिक आकर्षण का काम करती हैं। हमारे काम से प्रसन्न होकर और मार्केटिंग को समर्थन देने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ई-रिक्शा भी प्रदान किया है। इन दिनों, शासकीय कार्यालयों में स्थित स्टॉल्स से भी यह राखियां बेची जा रही हैं।
पर्यावरण को ध्यान में रख बनाई जा रही इको फ्रेंडली राखी-
समूह की अध्यक्ष, कुसुम सिन्हा, बताती है कि पिछले 5 सालों से वे धान, चावल, बांस और मयूर की राखियां बनाती आ रही थीं। इन्हें बालोद बाजार में बेचते जा रहे हैं। हालांकि इस वर्ष वे गोबर से बनी राखियों का निर्माण भी कर रही हैं। इन राखियों में बीज डालकर सजाया जा रहा है, ताकि रक्षाबंधन के बाद अगर राखियों से बीज निकालकर उन्हें कहीं लगा दिया जा सके, तो वहां से बीज उग आ सकें। कुसुम ने बताया कि पर्यावरण के साथ-साथ उन्होंने इन इको-फ्रेंडली राखियों का निर्माण किया है। इस सीजन तक लगभग डेढ़ लाख राखियां बेच चुके हैं। इसके अलावा, राखियों के साथ-साथ वे आचार और साबुन भी बनाते हैं।
अच्छी खासी हो रही आमदनी-
समूह की सचिव, लीला सिन्हा, कोषाध्यक्ष मधु कुलदीप, और प्रीति सिन्हा ने बताया कि उन्हें अपने घर के चूल्हे चौक से बाहर निकलकर इस तरह का काम करने में खास आनंद आ रहा है। इससे उन्हें एक अलग पहचान मिली है और लोग उन्हें जानने लगे हैं। उन्होंने बताया कि वे बिहान योजनाओं की विभिन्न गतिविधियों से जुड़कर स्वावलंबी बन गई हैं और उन्हें अच्छी आमदनी भी हो रही है। इससे उनके घर की स्थिति में काफी सुधार आया है। इस वर्ष, उनकी आमदनी में और भी वृद्धि हुई है।
मनाया जाएगा रक्षा दान त्योहार
जिला पंचायत के सीईओ, डॉ. रेणुका श्रीवास्तव ने नये दृष्टिकोण से बताया कि जिले में कई स्थानों पर महिलाएं राखियां बना रही हैं, लेकिन कुमुड़कट्टा की महिलाएं अपनी मेहनत से आकर्षक राखियां तैयार कर रही हैं। इस बार गोबर से बनी राखियों का निर्माण भी किया जा रहा है। पिछले वर्ष हमारा लक्ष्य 5 लाख रुपये तक की राखियां बेचने का था, लेकिन इस बार यह लक्ष्य से अधिक है। आगामी रक्षाबंधन के अवसर पर, रक्षादान उत्सव मनाया जाएगा। बहनें अपने भाइयों के कलाई में राखी बांधकर मतदान करने का आश्वासन देंगी। जो भाई रक्षाबंधन के समय राखी बंधवाने आ रहे हैं, उनकी बहनें उनके चुनाव के समय भी मतदान करने आने का प्रतिबद्धता देंगी।