इस दिन है श्रावण मास की आखिरी पूर्णिमा, जानिए क्या है इस पूर्णिमा का महत्व, कैसे होती है इसकी पूजा…|

इस साल का सावन महीना अत्यधिक शुभ है, जिसका पर्व “श्रावण पूर्णिमा” है। इस वर्ष सावन महिना दो महीनों तक बढ़ता है, जो हिंदू धर्म में पूर्णिमा के विशेष महत्व के साथ आता है। श्रावण मास के पूर्णिमा को “श्रावण पूर्णिमा” कहा जाता है और इस वर्ष यह 30 अगस्त 2023 को पड़ रहा है। इस दिन, भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है और इसी दिन “रक्षाबंधन” त्योहार भी मनाया जाता है। हालांकि इस बार रक्षाबंधन का यह त्योहार 2 दिनों के लिए है। हिंदू श्रद्धालु मानते हैं कि इस पूजा का पालन करने से व्यक्ति के सभी कष्ट और दुख समाप्त हो जाते हैं।

श्रावण माह की पूर्णिमा का दिन बहुत ही शुभ और पवित्र माना जाता है। इस दिन की गई पूजा से भगवान शिव बहुत ही प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओँ को पूरा करते हैं।

जानिए क्या है पूजा का शूभ मूहूर्त

श्रावण पूर्णिमा का व्रत 30 अगस्त 2023 को रखा जाएगा।

श्रावण पूर्णिमा तिथि 2023: 30 अगस्त की सुबह 10:58 मिनट से शुरू होगी।

श्रावण पूर्णिमा तिथि 2023 समाप्ति: 31 अगस्त की सुबह 7:05 मिनट तक श्रावण पूर्णिमा खत्म होगी।

क्या है सावन की इस पूर्णिमा का महत्व

श्रावण पूर्णिमा के दिन, सावन मास के विशेष महत्वपूर्ण दिनों में से एक होता है, जब भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विशेष महत्व होता है। इस व्रत का पालन करने से जीवन में कई लाभ प्राप्त होते हैं। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान के साथ भगवान गौरीशंकर की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और यह व्रत सभी पापों को नष्ट करने वाला माना जाता है। इस व्रत का पालन करने से बुद्धि, अच्छी सेहत और दीर्घायु प्राप्ति होती है। इस दिन देशभर में विशेष रूप से उत्तर भारत में रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है, जिसमें भाई-बहन का प्यार और बंधन का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन गरीबों को दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है और इसके साथ ही गौदान का भी महत्व होता है।

सावन पू्र्णिमा की पूजा विधि

श्रावण पूर्णिमा के दिन सुबह किसी पवित्र नदी में स्नान करके साफ वस्त्र धारण किए जाते हैं. इस दिन स्नानादि के बाद गाय को चारा डालना, चीटियों, मछलियों को भी आटा डालना शुभ माना जाता है।

एक चौकी पर गंगाजल छिड़ककर उस पर भगवान सत्यनारायण की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित की जाती है। उन्हें पीले रंग के वस्त्र, पीले फल, पीले रंग के पुष्प अर्पित करके पूजा की जाती है।

इसके बाद भगवान सत्यनारायण की कथा पढ़ी या सुनी जाती है। कथा पढ़ने के बाद चरणामृत और पंजीरी का भोग लगाया जाता है, इस प्रसाद को स्वयं ही ग्रहण कर लोगों को बांटा जाता है।

माना जाता है कि विधि-विधान से श्रावण पूर्णिमा व्रत किया जाए तो वर्ष भर के व्रतों के समान फल श्रावणी पूर्णिमा के व्रत से मिलता है।

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