भिलाई: भिलाई में 115 करोड़ रुपये की पब्लिक ट्रांसपोर्ट योजना की बसें कबाड़ हो गईं। सुपेला बस डिपो में 3 साल से खड़ी हुई 70 बसों का सिर्फ नाममात्र ढांचा ही बचा है। कोविड काल में बसों के पहिए इतने ठहरे हुए हैं कि उन्हें फिर से चलाना मुमकिन ही नहीं है। डिपो में खड़ी बसों के पूर्जे चोरों द्वारा चुरा लिए गए हैं। निगम ने पब्लिक की मांग पर इन बसों को फिर से चलाने का प्रयास किया, लेकिन प्राइवेट बस संचालकों की मनमानी के कारण सिटी बस के लिए सवारी उपलब्ध नहीं है। इसके परिणामस्वरूप, 7 महीने पहले शुरू हुई 8 बसों में से कई बंद हो गई हैं।
खबर: भिलाई में कबाड़ों के ढेर में खड़ी हुईं बसें, जो कभी शहर और आसपास के गांवों की सड़कों पर सरपट दौड़ा करती थीं, अब उन्हें दोबारा दौड़ने के लायक ही नहीं बचा। भिलाई निगम ने इन बसों को खरीदने के लिए अपनी संचित निधि से 10 करोड़ रुपये भी खर्च किए थे, जबकि जिला तत्कालीन सरकार ने उन्हें वापस करने का वादा किया था। लेकिन न तो निगम को वह 10 करोड़ रुपये वापस मिले और न ही बसें दोबारा चलाने की संभावना रही।
निगम के कमीश्नर रोहित व्यास ने बताया कि वर्तमान में सिर्फ 6 बसें ही चल रही हैं और बाकी बसों को चलाने की जिम्मेदारी उस एजेंसी की थी, जिसने इस काम को ग्रहण किया था। उन्होंने स्वीकारा कि सिटी बस नहीं चलने से पब्लिक को बड़ी मुश्किलें हो रही हैं।
भिलाई में पब्लिक ट्रांसपोर्ट बसें कबाड़ बन गई हैं। भिलाई निगम प्रशासन ने एक बस ऑपरेटर को इसका ठेका दिया था, जिसमें बस संचालक को खुद सारा खर्च उठाना था, और उसे दोबारा परमीट लेकर अलग-अलग रूट पर चलाना था। लेकिन बस ऑपरेटरों की दादागिरी के कारण कई रूट पर आज भी उस ठेकेदार को परमीट नहीं मिल पाई।
कुल मिलाकर अब सवाल यह है कि पब्लिक के पैसे से शुरू किए गए इस पब्लिक ट्रांसपोर्ट का फायदा जनता को ही नहीं मिल पा रहा है और उन्हें मनमाने किराए के बीच पब्लिक टैंपों और निजी बसों में सफर करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।