मिशन चंद्रयान-3: हैदराबाद। भारत 14 जुलाई को दोपहर 2.35 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से चंद्रयान-3 स्पेसशिप का लॉन्च करेगा। इस जानकारी को इसरो ने दी है। इसरो के मुख्यालयीन व्यक्ति एस सोमनाथ ने बताया कि चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह पर 23 या 24 अगस्त को सॉफ्ट लैंडिंग करने की कोशिश करेगा। यह सम्पूर्ण तैयारियों के साथ लॉन्च किया गया है। यह बुधवार को LVM-III लॉन्च वाहन में स्थापित किया गया था। इस मिशन का कुल बजट 651 करोड़ रुपए है। यदि चंद्रयान-3 का लैंडर सफलतापूर्वक चांद पर उतरता है, तो भारत चौथा ऐसा देश बन जाएगा। यह जान लें कि इस मिशन की नजर भारत के 140 करोड़ लोगों पर टिकी हुई है। इसके अलावा पूरी दुनिया की भी नजर चंद्रयान-3 पर है।
मिशन चंद्रयान-3: इससे पहले अमेरिका, रूस, और चीन चंद्रमा पर अपने स्पेसक्राफ्ट उतार चुके हैं। इस मिशन में भारत चांद की धरती पर एक लैंडर उतारेगा। इस लैंडर में एक रोवर भी है, जो चंद्रमा की धरती पर घूमेगा और वहां कुछ प्रयोग करेगा। लैंडर चांद पर एक लूनर दिन तक रहेगा। एक लूनर दिन धरती के 14 दिन के बराबर होता है। चंद्रयान-3 के लैंडर की चांद की सतह पर लैंडिंग के लिए जरूरी है कि वहां सूरज निकला हो। लैंडर के लिए सनलाइट जरूरी है। चांद पर 14-15 दिन सूरज निकलता है और बाकी 14-15 दिन सूरज नहीं निकलता है।
चंद्रयान-3 मिशन क्यों है खास?
मिशन चंद्रयान-3: चंद्रयान मिशन के माध्यम से इसरो चांद पर होने वाली घटनाओं और रसायनों का पता लगाएगा। यह मिशन 2008 में इसरो द्वारा शुरू किया गया था। इस मिशन के शुरू होने के 312 दिन बाद चंद्रयान से इसरो का संपर्क टूट गया, हालांकि इसरो ने इस मिशन को सफल बताया था। उस समय के इसरो के मुख्यालयीन व्यक्ति ने मीडिया को बताया था कि चंद्रयान-1 ने अपना 95% काम पूरा कर लिया था, लेकिन उसके बाद इसरो से उसका संपर्क टूट गया। इसके बाद, 2019 में चंद्रयान-2 मिशन को लॉन्च किया गया। यह मिशन आंशिक रूप से सफल था, लेकिन अंतरिक्ष में मौजूद विक्रम लैंडर की हार्ड लैंडिंग के कारण वह टूट गया।
चंद्रयान-2 के साथ क्या हुआ था जानें
मिशन चंद्रयान-3: चंद्रयान-2 मिशन को 22 जुलाई 2019 को लॉन्च किया गया था। 14 अगस्त को लैंडर और रोवर ने पृथ्वी की कक्षा को छोड़ दिया था। 6 दिन बाद यह चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया था। 6 सितंबर को विक्रम लैंडर ऑर्बिटर से अलग हुआ था। मिशन के अनुसार, विक्रम लैंडर को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर भारतीय समयानुसार 7 सितंबर की रात 1 से 2 बजे के बीच लैंड करना था। यह चांद की सतह से 2.1 किलोमीटर दूर था, लेकिन इसका इसरो से संपर्क टूट गया था। इसके बाद से ही भारत चंद्रयान-3 मिशन की तैयारी में जुटा है। चंद्रयान-2 ने 48 दिनों में 30,844 लाख किलोमीटर की यात्रा की थी। मिशन के लिए 978 करोड़ रुपये का खर्च हुआ था। इसके विक्रम लैंडर को सफलता नहीं मिली, लेकिन यह मिशन अविफल नहीं रहा क्योंकि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर अभी भी चांद की कक्षा में अपना कार्य कर रहा है।
कौन सा रॉकेट ले जाएगा चंद्रयान को?
चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग के लिए इसरो एलवीएम-3 लॉन्चर, जिसे रॉकेट के रूप में जाना जाता है, का इस्तेमाल कर रहा है। यह भारी सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में छोड़ने की क्षमता रखता है। इसकी ऊचाई 43.5 मीटर, अर्थात करीब 143 फीट है। इसका वजन 642 टन है। यह एलवीएम-3 रॉकेट की चौथी उड़ान होगी। इसका मुख्य कार्य चंद्रयान-3 को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में प्रक्षेपित करना है। इसका मतलब है कि इसे 170×36500 किलोमीटर वाली गृहस्थ अंतरिक्ष पथ में स्थापित किया जाएगा। पहले इसे जीएसएलवी-एमके3 के नाम से जाना जाता था, जिसमें छह सफल लॉन्च हो चुके हैं।
चंद्रयान-3 के लिए सॉफ्ट लैंडिग जरूरी
लैंडर में 5 और रोवर में 2 यंत्र स्थापित हैं। इनके द्वारा तापमान, मिट्टी और वातावरण में मौजूद तत्व और गैसों का खोज किया जाएगा। इसके लिए सॉफ्ट लैंडिंग आवश्यक है, ताकि रोवर से लैंडर, लैंडर से ऑर्बिटर और ऑर्बिटर से आईएसआरओ तक इलेक्ट्रॉनिक संकेत मिलते रहें। लैंडर-रोवर केवल चंद्र के एक दिन के बराबर समय तक कार्य कर सकेंगे, और रात में तापमान माइनस 180 डिग्री तक गिरेगा। इससे यह गारंटी नहीं है कि यंत्र संचालित रहेंगे। अगले दिन, सूर्य के किरणों से फिर से चार्ज होने पर एक और मौका मिलेगा।
चंद्रयान-3 के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी
चंद्रयान मिशन के तहत इसरो चांद पर पहुंचना चाहता है। भारत ने पहली बार 2008 में चंद्रयान-1 की सफल लॉन्चिंग की थी। इसके बाद 2019 में चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग में भारत को असफलता का सामना करना पड़ा। अब भारत चंद्रयान-3 को लॉन्च करके इतिहास रचने की कोशिश में है। इसकी लॉन्चिंग सतीश धवन स्पेस सेंटर, श्रीहरिकोटा से होगी।
चंद्रयान-3 को चंद्रमा तक पहुंचाने के लिए तीन हिस्से हैं। इसरो ने इस मिशन के लिए तीन मॉड्यूल तैयार किए हैं, जिन्हें टेक्निकल भाषा में मॉड्यूल कहा जाता है। चंद्रयान-3 मिशन में ये तीन मॉड्यूल शामिल हैं… प्रोपल्शन मॉड्यूल, जो स्पेसशिप को उड़ाने के लिए उपयोग होता है, लैंडर मॉड्यूल, जो शिप को चंद्रमा पर उतारने के लिए उपयोग होता है, और रोवर, जो चंद्रमा की सतह पर घूमकर जानकारी एकत्र करने के लिए उपयोग होता है।
चंद्रयान-2 में इन तीनों के अलावा एक और हिस्सा था, जिसे ऑर्बिटर कहा जाता है। इस बार वह ऑर्बिटर चंद्रयान-3 के लिए नहीं भेजा जा रहा है। चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर पहले से ही चंद्रमा के चारों ओर से घूम रहा है। अब इसरो उसे चंद्रयान-3 मिशन में उपयोग करेगा।