डाक्‍टरों का कमाल : आक्सीजन सपोर्ट के बिना नहीं रह पाता था मरीज, सर्जरी के 12 दिनों बाद ही दौड़ा

रायपुर। राजधानी के आंबेडकर अस्पताल के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट के हृदय, छाती और वास्कुलर सर्जरी विभाग के डॉक्टरों ने नारायणपुर के 26 वर्षीय युवक के हृदय की जन्मजात बीमारी एब्सटीन एनामली का सफल ऑपरेशन किया है। बीमारी की गंभीरता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि ऑपरेशन के बाद मरीज दो दिनों तक वेंटिलेटर पर था और हालत नाजुक थी। सर्जन को आइसीयू में ही मरीज के पास लगातार तीन दिनों तक रुकना पड़ा। सर्जन खाना भी अस्पताल में ही खाते थे।

सर्जरी के बाद आइसीयू में ही मरीज के साथ आपरेशन करने वाले सर्जन ने गुजारे तीन दिन

ऑपरेशन के पहले मरीज आक्सीजन सपोर्ट के बिना नहीं रह सकता था, अब वह सर्जरी के 12 दिन बाद ही दौड़ने लगा है। दो लाख लोगों में से एक व्यक्ति में यह बीमारी पाई जाती है। सर्जरी करने वाले डॉ. कृष्णकांत साहू का कहना है कि तीन सफल ऑपरेशन करके आंबेडकर अस्पताल प्रदेश का प्रथम संस्थान बन गया है, जहां पर सबसे अधिक एब्स्टीन एनामली का ऑपरेशन किया गया है।

मरीज को बार-बार चक्कर और बेहोशी आती थीं। वह आक्सीजन सपोर्ट के बिना रह पाना मुश्किल था। मरीज का हार्ट इतना कमजोर था कि ऑपरेशन के बाद जब हृदय लंग मशीन के सहारे से उसका समर्थन हटाया गया, तो ह्रदय ठीक से धड़क नहीं रहा था। उसका ब्लड प्रेशर बहुत कम था, इसलिए ऑपरेशन में पांच घंटे से अधिक का समय लगा। मरीज की सर्जरी डॉ. खूबचंद बघेल द्वारा स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत मुफ्त में की गई है।

आक्सीजन सैचुरेशन 68-70 प्रतिशत

डॉ. कृष्णकांत साहू की ओपीडी में मरीज पहुंचा तो उसकी आक्सीजन सेचुरेशन 68-70 प्रतिशत थी। इको कार्डियोग्राफी और अन्य जांचों से पता चला कि उसे एब्सटीन नामक जन्मजात बीमारी है। इस बीमारी में 25 से 28 साल की उम्र तक सभी मरीज हार्ट फेल्योर, अनियमित धड़कन या किसी अन्य कारणों से मर जाते हैं। डॉ. साहू ने बताया कि नारायणपुर का युवक भी अपने जीवन के अंतिम चरण में था। उसके हृदय का राइट वेंट्रिकल (नीलय) केवल 10 प्रतिशत कार्य कर रहा था। लेफ्ट वेंट्रिकल बहुत ही छोटा था।

इस तरह के मरीज आपरेशन के बावजूद भी बच पाना मुश्किल होता है, इसलिए परिजनों को हृदय प्रत्यारोपण की सलाह दी गई थी। उनके अत्यंत गरीब परिवार के होने के कारण, वे कहीं बाहर जाने में असमर्थ दिखाई देते थे। आपरेशन करने के बावजूद जब 90 से 95 प्रतिशत से अधिक खतरा बताया गया, तब भी स्वजन तैयार हो गए। आपरेशन के बाद, मरीज को हार्ट लंग मशीन के सहारे से बाहर निकलने में समस्या आ रही थी। आइसीयू में मरीज को तीन बार सीपीआर दिया गया। अब मरीज पूरी तरह से स्वस्थ हो गया है।

क्या है एब्सटीन एनामली बीमारी

यह एक जन्मजात हृदय रोग है। जब बच्चा मात्रा के गर्भ में होता है, तब प्रथम छह हफ्तों में ही उसके हृदय का विकास होता है। हृदय के विकास में बाधा आने पर हृदय असामान्य हो जाता है। इस बीमारी में मरीज के हृदय का ट्राइक्स्पिड वाल्व और दाहिना नीलय ठीक से विकसित नहीं हो पाता। हृदय के ऊपरी चैम्बर में छेद होता है, जिसके कारण मरीज के फेफड़ों में (शुद्ध) ऑक्सीजनेशन होने के लिए पर्याप्त मात्रा में खून नहीं जा पाता। इससे शरीर नीला पड़ जाता है। 13 प्रतिशत ऐसे मरीज जन्म के तुरंत बाद मर जाते हैं। 18 प्रतिशत बच्चे दस साल की उम्र तक मर जाते हैं। 25 से 28 साल की उम्र तक संभावित है कि कोई जिंदा नहीं रहता है।

विशेष तकनीक से मरीज का आपरेशन

डॉ. साहू ने बताया कि विशेष तकनीक से मरीज का ऑपरेशन किया गया, जिससे परमानेंट पेसमेकर लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ी। इस ऑपरेशन में 50 प्रतिशत मरीजों को परमानेंट पेसमेकर की जरूरत होती है, क्योंकि जहां ऑपरेशन किया जाता है, वह स्थान हृदय की गति को नियंत्रित करने वाले सर्किट के डेमेज का ज्यादा खतरा होता है। अगर यह सर्किट खराब हो जाता है, तो मरीज की धड़कन बहुत कम हो जाती है, जिसे केवल पेसमेकर द्वारा ही सुधारा जा सकता है।

आपरेशन में शामिल टीम

हार्ट सर्जन डॉ. कृष्णकांत साहू, डॉ. निशांत सिंह चंदेल, डॉ. संजय त्रिपाठी, डॉ. सत्वाक्षी मंडल (पीजी), कार्डियक एनेस्थेटिस्ट डॉ. तान्या छौड़ा और डॉ. नंदीनी के साथ, नर्सिंग स्टाफ राजेंद्र साहू, नरेंद्र सिंह, प्रियंका, तेजेंद्र, किरण, कुमुद, शीवा, परफ्यूजनिस्ट विकास और डिगेश्वर, तथा एनेस्थेसिया टेक्नीशियन भूपेंद्र चंद्र और हरीशचंद्र साहू हैं।

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