नए संसद भवन के मामले में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बयानों का हंगामा है।

नए संसद भवन का उद्घाटन 28 मई को होने जा रहा है। इसके सम्बंध में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बयानों का बवाल शुरू हो गया है। उन्नीस विपक्षी दलों ने इस समारोह का बायकॉट कर दिया है। वे विभिन्न सवाल पूछ रहे हैं। सबसे पहला सवाल यह है कि क्या इस नए संसद भवन की आवश्यकता थी या नहीं?

विपक्षी दलों को सबसे बड़ी चिंता यह है कि नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्यों कर रहे हैं? कांग्रेस नेता राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना है कि उद्घाटन राष्ट्रपति द्वारा करवाना चाहिए। यद्यपि राष्ट्रपति संसद के सत्रों की शुरुआत करते रहते हैं और उनका अभिभाषण भी संसद में होता है।

राष्ट्राध्यक्ष के दर्जे पर होने के कारण उद्घाटन का आयोजन राष्ट्रपति के द्वारा कराने की मांग एक तरीके से सही भी हो सकती है, लेकिन वहाँ विवाद है कि सत्ता पक्ष इस मौके को गंवाना नहीं चाहता है और विपक्ष इसे मोदी या भाजपा के लाभ में नहीं देना चाहता है।

सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस की सरकार होती तो क्या वे इस श्रेय को छोड़ देती? शायद वह इसे छोड़ नहीं पाती। फिर भाजपा से यह उम्मीद क्यों की जा रही है? जैसा कि माना जाता है- अंततः इस इनिशिएटिव का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही है। उन्होंने आगे बढ़कर इस इनिशिएटिव को लिया है, इसलिए श्रेय भी उसी को मिलनी चाहिए।

निश्चित ही, 19 विपक्षी दल उद्घाटन समारोह का बायकॉट करेंगे, लेकिन लगता नहीं कि इस विरोध से भाजपा या प्रधानमंत्री मोदी की राजनीतिक सेहत पर कोई असर पड़ेगा।

वैसे भी, बुधवार को गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट रूप से कह दिया है कि हमने सभी को निमंत्रण भेजा है और सरकार चाहती है कि सभी दल इस समारोह में अवश्य शामिल हों, क्योंकि यह ऐतिहासिक घटना है। सभी नेताओं को इसका साक्षी बनना ही चाहिए।

गृहमंत्री के इस बयान से सीधा सा मतलब यह है कि हमने निमंत्रण भेज दिया है। चलो अच्छा है! नहीं आओ तो आपकी मर्ज़ी! उद्घाटन कार्यक्रम तो रुकने या टलने वाला नहीं है। होना चाहिए था कि सरकार ही विपक्षी दलों को मनाती। विपक्षी दल भी इसे दलगत राजनीति से ऊपर उठकर देखें।

जिस संसद में सभी दलों को बैठना है, उसके उद्घाटन में भी सभी दलों की उपस्थिति होती तो यह एक उत्कृष्ट उदाहरण बनता। आने वाली पीढ़ियाँ जब इसका इतिहास पढ़ेंगीं तो उन्हें भारतीय राजनीतिक दलों के मेलजोल की एक सकारात्मक गवाही मिलेगी। वर्ना राजनीति तो होती रहेगी, और आगे भी होती रहेगी।

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