29 अप्रैल को जानकी जयंती मनाई जाती है। इस दिन देवी सीता की पूजा एवं व्रत करने की परंपरा होती है जो महादान का पुण्य देती है। होता है।

यह दिन सुख-समृद्धि बढ़ाने का भी अच्छा अवसर

29 अप्रैल को जानकी नवमी मनाई जाती है। यह पर्व वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष के नौवें दिन के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी को पुष्य नक्षत्र में देवी सीता कन्या रूप में प्रकट हुई थीं और राजा जनक को खेत मिली थीं। इस दिन देवी सीता की पूजा व व्रत करने से महादान का पुण्य मिलता है, साथ ही सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

29 अप्रैल को देवी सीता जयंती मनाई जाती है, इस दिन उनके प्राकट्य का उत्सव मनाया जाता है। इस दिन देवी सीता और श्रीराम की पूजा के साथ ही व्रत भी रखा जाता है। इससे न सिर्फ पृथ्वी को दान सहित सोलह तरह के बड़े दान का फल मिलता है, बल्कि सुख समृद्धि और मान-सम्मान का वरदान भी मिलता है।

वाल्मीकि रामायण के अनुसार, राजा जनक को कोई संतान नहीं थी जिसके कारण उन्होंने एक यज्ञ का संकल्प लिया। इसके लिए उन्हें जमीन तैयार करनी पड़ी। वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुष्य नक्षत्र में, जब राजा जनक जमीन को जोत रहे थे, तभी उनके हल में से एक हिस्सा पृथ्वी में फंस गया।

जब राजा जनक ने उस जगह को खुदाई करने का निर्णय लिया था, तो उन्हें मिट्टी के एक बर्तन में एक कन्या मिली। जब उन्होंने भूमि को जोता और हल की नोक को सीटा कहा, तब उस स्थान को “सीता” कहा गया।

जनक राजा ने सीता को अपनी बेटी की तरह स्वीकार किया था, जिससे उनके एक नाम जानकी भी था। इसके अलावा उन्हें वैदेही भी कहा जाता है क्योंकि जनक का देश विदेह था। एक दिन बचपन में सीता खेलते-खेलते शिव जी के धनुष को उठा लिया था।

राजा जनक को उस समय पता चला कि सीता दैवीय कन्या हैं। शिव धनुष को उठाने वाले रावण, बाणासुर जैसे कई वीरों के बाद भी उसे हिलाना असंभव था। इसलिए राजा जनक ने उस से निश्चित किया कि सीता का विवाह उस व्यक्ति से होना चाहिए जो उस धनुष को उठा सकता था और उसे तोड़ सकता था।

सीता नवमी का महत्व

देवी सीता के अवतार के बारे में मान्यता है। इस दिन व्रत-पूजा करने से कई तीर्थ यात्राओं और महादानों का बराबर पुण्य मिलता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखती हैं और उनके घर में सुख और शांति का वास होता है।

जानकी जयंती के दिन सुहाग के सामानों का दान करने की परंपरा है जिससे सौभाग्य बढ़ता है। इस दिन सुहागिन महिलाओं का व्रत रखने से उनके घर में सुख-शांति बनी रहती है और पति की उम्र बढ़ती है। मान्यता है कि माता सीता की पूजा और व्रत करने वाली महिलाओं में धैर्य, त्याग, शील, ममता और समर्पण जैसे गुण आते हैं जो आत्मविश्वास को बढ़ाते हैं। इस दिन जानकी की पूजा करने से पुण्य प्राप्त होता है और दुःख-दर्द से मुक्ति मिलती है।

सीता पूजन की विधि

सुबह जल्दी उठकर नहाएं। व्रत-पूजा का संकल्प लें। एक चौकी पर भगवान श्रीराम-सीता की मूर्ति या तस्वीर रखें।

प्रथम तो, राजा जनक और माता सुनयना को पूजनीय माने जा सकते हैं। उनकी पूजा से आध्यात्मिक तथा दानशील गुणों का विकास होता है।

दूसरा, पृथ्वी की पूजा भी बहुत महत्वपूर्ण है। हमारे जीवन के लिए पृथ्वी अत्यंत आवश्यक है। इसलिए हमें पृथ्वी के लिए भी पूजा करनी चाहिए।

तीसरा, श्रद्धा अनुसार दान का संकल्प लेना भी बहुत आवश्यक है। दान से हम अन्य लोगों के लिए सहायता करते हैं और वे खुश रहते हैं। यदि हम सबको सहायता करेंगे, तो समाज में सुख-शांति बनी रहेगी।

चौथा, मिट्टी के बर्तन में धान, जल या अन्न भरकर दान करना एक बहुत ही उपयोगी और धार्मिक कार्य है। इससे

हम दूसरों को खाने के लिए भोजन दे सकते हैं और इससे उनकी मदद कर सकते हैं। इससे हमारे अंतर्ज्योति की भी उपलब्धि होती है।

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