सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली 15 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो चुकी है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली की पांच जजों की संवैधानिक बेंच सुनवाई कर रही है।
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता और सेम सेक्स मैरिज के पक्ष में लगाई गई याचिकाओं की पैरवी मुकुल रोहतगी कर रहे हैं। सुबह 11 बजे से शुरू हुई सुनवाई 1 बजे लंच ब्रेक के लिए रोक दी गई। 2 बजे के बाद कोर्ट में फिर सुनवाई शुरू हुई। कोर्ट रूम LIVE…
केंद्र सरकार: सॉलिसिटर जनरल एसजी मेहता ने कहा कि सेम सेक्स मैरिज का मुद्दा ऐसा नहीं है, जिस पर एक पक्ष में बैठे 5 लोग, दूसरे पक्ष में बैठे 5 लोग और बेंच पर बैठे 5 विद्वान बहस कर सकें। इसमें दक्षिण भारत के किसान और उत्तर भारत के बिजनेसमैन का भी नजरिया जानना होगा।
केंद्र सरकार: हम अभी भी इन याचिकाओं के आधार पर सवाल कर रहे हैं, क्योंकि हो सकता है कि इस मामले पर सभी राज्य एकराय न हों। हम अभी भी यही कह रहे हैं कि क्या इस मुद्दे पर कोर्ट खुद फैसला ले सकती है।
सुप्रीम कोर्ट: हम जानना चाहते हैं कि याचिकाकर्ता क्या दलीलें दे रहे हैं। देखते हैं कि याचिकाकर्ता और हमारे दिमाग में क्या चल रहा है।
केंद्र सरकार: यह बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है।
सुप्रीम कोर्ट: सॉलिसिटर जनरल हमें नहीं बता सकते कि यह फैसला कैसे करना है। हम सही वक्त पर आपको भी सुनेंगे।
याचिकाकर्ता: वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि हम अपने घरों में प्राइवेसी चाहते हैं। साथ ही यह भी कि हमें सार्वजनिक जगहों पर कोई लांछन ना सहना पड़े। हम चाहते हैं कि 2 लोगों के लिए शादी और परिवार को लेकर वैसी ही व्यवस्था हो, जैसी अभी दूसरों के लिए चल रही है। शादी और परिवार की हमारे समाज में इज्जत होती है। कानून में से इस मामले पर आपराधिक और अप्राकृतिक हिस्सा हट गया है। ऐसे में हमारे अधिकार भी समान हैं।
याचिकाकर्ता: हम सेम सेक्स वाले लोग हैं। हमें भी समाज के हेट्रोसेक्शुअल ग्रुप के तौर पर संविधान के तहत समान अधिकार मिले हैं। आपने ही यह फैसला किया है। हमारे समान अधिकारों के रास्ते में केवल एक ही रुकावट थी 377।
याचिकाकर्ता: हम बूढ़े होते जा रहे हैं। हम भी चाहते हैं कि शादी की सम्मान हो। आज स्थिति क्या है? ये जो लोग हैं, इन्हें गे कहा जाता है, क्वीर कहा जाता है। अगर ये कहीं जाते हैं तो लोग इन्हें देखने लगते हैं। आर्टिकल A 21 के तहत यह अधिकारों पर प्रतिबंध और उनका उल्लंघन है। आपने ही अनुज गर्ग के केस में सेक्स की परिभाषा को माना है, जिसमें कहा गया था कि सेक्स के मायने यौन इच्छा से है ना कि किसी के पुरुष या महिला होने से।
याचिकाकर्ता: मुझे लग रहा है कि कुछ ऐसा होने वाला है, जो कभी नहीं हुआ है। कई साल पहले मैंने 377 को अपराध से मुक्त करने का केस हाथ में लिया था। अगर हमारे पास हेट्रोसेक्शुअल ग्रुप के तौर पर हमें समान अधिकार तो शादी का अधिकार होना चाहिए।
याचिकाकर्ता: 2019 में सेम सेक्स की परिभाषा थी- समान लिंग वाले दो लोगों का समारोह के दौरान एक होना, चाहे वो पुरुष हों या फिर महिला। भारत सरकार बरसों पुरानी कानूनी चीजों का पालन करती आ रही है। अगर आप उसी का पालन कर रहे हैं तो नए कानूनों का भी पालन कीजिए।
केंद्र सरकार: राज्यों को जरूर सुना जाना चाहिए, क्योंकि इस मा्मले से हिंदू और मुस्लिम दोनों प्रभावित होंगे।
सुप्रीम कोर्ट: हम पर्सनल लॉ में जाना नहीं चाहते और आप हमसे चाह रहे हो कि उसमें जाएं, ऐसा क्यों? आप हमसे इस पर फैसला करने के लिए कैसे कह सकते हैं। हम सब कुछ सुनने के लिए बाध्य नहीं हैं।
केंद्र सरकार: तब हम इस मामले में उलझ रहे हैं। हम तो कह रहे हैं कि इस मामले पर सुनवाई ही ना की जाए।
सुप्रीम कोर्ट: हम बीच का रास्ता निकाल रहे हैं। CJI ने कहा- सुनवाई की कवायद आने वाली पीढ़ियों के लिए हो रही है। अदालत और संसद इस पर बाद में फैसला करेंगे।
17 अप्रैल को केंद्र ने कहा था- कानून बनाना संसद का काम
केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में दूसरा हलफनामा दाखिल किया था। सरकार ने कहा कि सेम सेक्स मैरिज को वैध ठहराए जाने की डिमांड सिर्फ शहरी एलीट क्लास की है। कानून बनाए जाने पर आम नागरिकों के हित प्रभावित होंगे। सरकार ने कहा कि सभी धर्मों में विवाह का एक सामाजिक महत्व है। हिन्दू में विवाह को संस्कार माना गया है, यहां तक की इस्लाम में भी। इसलिए इन याचिकाओं को खारिज कर देना चाहिए। इस पर फैसला करना संसद का काम है। कोर्ट को इससे दूर रहना चाहिए।
केंद्र सरकार सेम सेक्स मैरिज कानून के विरोध में क्यों?
केंद्र सरकार सेम सेक्स मैरिज की अनुमति देने के खिलाफ है। इस पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर सभी याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है। चार पॉइंट में समझें…
- केंद्र सरकार ने कहा था- भले ही सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 377 को डीक्रिमिनलाइज कर दिया हो, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि याचिकाकर्ता सेम सेक्स मैरिज के लिए मौलिक अधिकार का दावा करें।
- केंद्र सरकार ने सेम सेक्स मैरिज को भारतीय परिवार की अवधारणा के खिलाफ बताया है। केंद्र ने कहा कि समलैंगिक विवाह की तुलना भारतीय परिवार के पति, पत्नी से पैदा हुए बच्चों की अवधारणा से नहीं की जा सकती।
- कानून के मुताबिक भी सेम सेक्स मैरिज को मान्यता नहीं दी जा सकती, क्योंकि उसमें पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है। उसी के मुताबिक दोनों के कानूनी अधिकार भी हैं। सेम सेक्स मैरिज में विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को अलग-अलग कैसे माना जा सकेगा?
- कोर्ट में केंद्र ने कहा था कि समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने से गोद लेने, तलाक, भरण-पोषण, विरासत आदि से संबंधित मुद्दों में बहुत सारी जटिलताएं पैदा होंगी। इन मामलों से संबंधित सभी वैधानिक प्रावधान पुरुष और महिला के बीच विवाह पर आधारित हैं।
कौन हैं याचिकाकर्ता कपल?
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से जुड़ी याचिकाओं में एक याचिका हैदराबाद के समलैंगिक कपल सुप्रियो और अभय की है। कपल ने अपनी याचिका में कहा है कि दोनों एक दूसरे को एक दशक से ज्यादा वक्त से जानते हैं और रिलेशनशिप में हैं। इसके बावजूद शादीशुदा लोगों को जो अधिकार मिले हैं, उन्हें उन अधिकारों से वंचित रखा गया।
जबकि सुप्रीम कोर्ट बार-बार यह दोहराता रहा है कि कोई भी वयस्क व्यक्ति अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने और जिंदगी जीने के लिए स्वतंत्र है। कपल ने अपनी याचिका में कहा है कि सरोगेसी से लेकर, एडॉप्शन और टैक्स बैनिफिट जैसी कई सुविधाएं सिर्फ शादीशुदा लोगों को ही मिलती हैं। उन्हें भी इस तरह की सुविधाएं मिलनी चाहिए।
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सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा- कानून बनाना संसद का काम, कोर्ट इससे दूर रहे
केंद्र सरकार ने 17 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में सेम सैक्स मैरिज मामले में दूसरा हलफनामा दाखिल किया। इसमें केंद्र ने कहा कि सेम सेक्स मैरिज को वैध ठहराए जाने की डिमांड सिर्फ शहरी एलीट क्लास की है। इससे आम नागरिकों के हित प्रभावित होंगे। सरकार ने कहा कि इस पर फैसला करना संसद का काम है। कोर्ट को इस पर फैसले से दूर रहना चाहिए।