“धर्मांतरण का सच बता रहे आदिवासी: बस्तर और सरगुजा में जनजातियों के घरों से देवी-देवताओं की तस्वीरें हटाई गईं और उनकी मान्यताओं को बदला गया, बीमारियों को दूर करने का बहाना बनाकर।”

धर्मांतरण छत्तीसगढ़ में एक बड़ा सियासी मुद्दा है। यह मुद्दा अब तो बहुत से हिस्सों में फैल चुका है, न केवल प्रदेश के जंगली इलाकों में। इसकी बात तो आज की तारीख में ज्यादा होती है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि इसकी विस्तृत रूप से धीमी लेकिन स्थिर गति से फैलाव हमें अपनी मौजूदा स्थिति से दूर ले जा रहा है।”

“वो आदिवासी हैं, जिनसे छत्तीसगढ़ को देश और दुनिया में पहचाना जाता है। अब उनकी मान्यताएं और परंपराएं बदल रही हैं। यही बदलाव बस्तर से सरगुजा तक टकराव का कारण बन रहा है। सियासी लोग और सामाजिक संस्थाएं धर्मांतरण हो रहा है ऐसा कहती हैं। लेकिन उन लोगों द्वारा जो सत्ता में हैं, वो इस बात से इनकार करते दिखते हैं।”

क्या है छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण का सच…

रविवार को रायपुर में हुए कार्यक्रम में आदिवासी जुटे थे। इन्होंने मांग की है कि धर्म बदलने वाले आदिवासियों को आरक्षण से अलग नहीं किया जाना चाहिए। यह उनकी मुख्य मांग है। इस प्रक्रिया को डी-लिस्टिंग कहा जाता है। इस बारे में प्रदेशभर के आदिवासियों ने अपने विचार व्यक्त किए हैं कि क्या आदिवासी क्षेत्रों में धर्मांतरण होता है?

देवी-देवताओं की तस्वीरें हटवाते हैं…

बस्तर जिले से रायपुर आई बालमति नागेश ने बस्तर जिले के दूर-दराज के गांवों का हाल बताया। उन्होंने बताया कि पिछले साल से कुछ आदिवासी परिवार ईसाई मान्यताओं के साथ रहने लगे हैं। इसी तरह कुछ सालों से कई गांवों में ये हो रहा है। ईसाई धर्म का प्रचार करने वाले लोगों से मिलते हैं और उन्हें गरीबी कम करने, स्वास्थ्य लाभ देने (चंगाई सभा ले जाकर), शिक्षा की सुविधाएं दिलाने की बात कहते हुए ईसाई बनाया जाता है।

वे बताते हैं कि अगर किसी घर का एक सदस्य ईसाई मान्यताओं के साथ रहना शुरू करता है तो उसके पूरे परिवार और रिश्तेदारों को ईसाई बनने को कहा जाता है। इसके बाद देवी-देवताओं की तस्वीरों को हटवाया जाता है। टूलसी चौरा को तोड़ने, टूलसी के पौधे को हटाने जला देने को कहा जाता है। ऐसा करने वाले बहुत से ग्रामीण हैं।

मेरे चाचा ईसाई बन गए

कांकेर जिले के अमाबेड़ा गांव से आए आदिवासी युवक ने बिंसु राम मंडावी से कहा कि हमारे इलाके में ईसाई धर्म का प्रचार होता है। कई आदिवासी समुदाय के लोग चर्च में प्रार्थना करने जाते हैं। मैंने देखा है कि गांव में कुछ लोग उन्हें फिर से हिंदू मान्यताओं से जीने को कहते हैं तो विवाद होता है, मगर बात थाने तक नहीं जाती। वे लोग नहीं मानते और ईसाई परंपरा के अनुसार जी रहे हैं। मेरे छोटे चाचा को भी उन्होंने ईसाई बना दिया है।

श्याम कुमारी कुजूर ने अंबिकापुर से आकर बताया कि उन्हें भी कुछ लोगों ने ईसाई बनाने का प्रयास किया। उनसे कहा गया कि वे भी चर्च आयें, जीवन के कष्ट दूर होंगे। लेकिन श्याम कुमारी ने उत्तर देते हुए कहा कि वे अपने पूर्वजों को नहीं छोड़ेंगे, उनकी बताई जीवनशैली में ही जीना चाहते हैं और उसी में वे खुश हैं।

मान्यताएं बदली जाती हैं नाम नहीं, इसी पर विवाद हैं।

अब प्रदेश में इसी बात पर विवाद है। रविवार को इसी वजह से रायपुर में डी लिस्टिंग सभा की गई। जिसमें मांग की गई कि जो धर्म बदल चुके हैं उन्हें सरकार से आदिवासियों को मिलने वाली सुविधाएं नहीं मिलनी चाहिए। इसी वजह से प्रदेश के कई गांवों में टकराव और हिंसा के हालात बने हैं।

रिकॉर्ड में ईसाई नहीं,लेकिन गांवों में चर्च बने हैं…
जनजाति सुरक्षा मंच के प्रदेश संयोजक और भाजपा से पूर्व विधायक भोजराज नाग ने कहा, प्रदेश में अधिकांश जगहों पर रिकॉर्ड यानी की सरकारी तौर पर कोई भी आदिवासी ईसाई नहीं है। यानी की वो आदिवासी जो मान्यताओं को बदलकर ईसाई की तरह रहते हैं, सरकारी रिकॉर्ड में उन्होंने अपनी जाति नहीं बदलवाई वो आदिवासी ही हैं। उनके नाम वही है।

धर्मांतरण करने वाले भी कोई डॉक्यूमेंट पर किसी का धर्मांतरण कर रहे हों, प्रशासन को जानकारी दे या ले रहे हों ऐसा नहीं है। बस्तर, नारायणपुर, सुकमा, कांकेर, रायगढ़ जिले के अंदरूनी गांव ऐसे हैं जहां पिछले कुछ सालों में चर्च बने हैं। वहां स्थानीय आदिवासी ही प्रार्थना के लिए जाते हैं। अब ये परिस्थिति भी अजीब है कि सरकारी रिकॉर्ड में कोई धर्मांतरण नहीं और चर्च किसके लिए बन रहे।

कोई आंकड़ा नहीं…

प्रदेश में धर्म परिवर्तन करने का कोई ठोस आंकड़ा मौजूद नहीं है। समय-समय पर सरकार की तरफ से कहा जाता रहा है कि धर्मांतरण को लेकर आंकड़ों में कोई जानकारी नहीं है, न ही कहीं जबरन धर्म परिवर्तन की कोई एफआईआर दर्ज हुई है। ऐसा इस वजह से भी है क्योंकि धर्म को बदलने वाले और दूसरे धर्म मानना शुरू कर चुके लोगों ने इसकी जानकारी प्रशासन को दी ही नहीं है। सब विश्वास के जरिए हो रहा है। दूसरी तरफ जशपुर, रायगढ़ जैसे हिस्सों में घर वापसी यानी कि दूसरे धर्मों में आ चुके आदिवासियों को मूल धर्म में लाने का अभियान चल रहा है। इसका भी कोई प्रशासनिक आंकड़ा नहीं है।

क्या कानून धर्म बदलने की इजाजत देता है, नियम क्या है ?

  • धर्म को बदलने का एक एफिडेविट बनवाना होता है। इसमें अपना बदला हुआ नाम, पुराना धर्म, और एड्रेस लिखना होता है।
  • फिर किसी राष्ट्रीय दैनिक अखबार में अपने धर्म परिवर्तन की जानकारी क विज्ञापन प्रकाशित करना होता है।
  • सरकारी तौर पर इसे दर्ज करने के लिए गजट ऑफिस में आवेदन करना होता है, कलेक्टर को जानकारी दी जाती है।
  • कानूनी तरीके से कोई भी अपना धर्म आसानी से बदल सकता है.
  • कानून कहता है कि हर किसी को अपनी पसंद के धर्म का चयन करने के लिए स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए।
  • कानून कहता है कि कोई भी अपनी मर्जी से अपना धर्म बदल सकता है, ये उसका निजी अधिकार है।
  • कानून ये भी कहता है कि किसी को डरा-धमका या लालच देकर धर्म परिवर्तन नहीं करा सकते।

2019 में रायगढ़ जिले के आमानारा गांव में धर्म परिवर्तन करने वालों ने एक चर्चा बनाई थी। उसके अलावा ईसाई समुदाय के लिए अलग से कब्रिस्तान भी बनाया गया था।

क्या धरायपुर में आदिवासी समाज के लोगों और बस्तर, जशपुर, सरगुजा के ग्रामीणों के बीच 2018 के बाद से धर्म बदलने या धर्म छोड़कर नए धर्म की मान्यताओं के साथ जीने का यह काम कुछ दो-चार सालों में नहीं हुआ है? बल्कि प्रदेश के अस्तित्व जितना ही पुराना है। सैंकड़ों गांवों में चर्च सालों पहले से ही बनी हुई हैं। युवा पीढ़ी नए धार्मिक मान्यताओं के बीच ही बढ़ रही है। जो उनके पूर्वजों ने सालों पहले अपनाई थीं, ग्रामीणों से चर्चा के बाद यह तसल्ली से समझा जा सकता है कि आदिवासी इलाकों में धार्मिक मान्यताओं के बदलाव का ये क्रम ताजा नहीं है।

कोई जबरन धर्म परिवर्तन करवाए तो

भारत में कोई केंद्रीय स्तर पर कानून नहीं है जो जबरन ‘धर्म परिवर्तन के मामले में कार्रवाई करता हो। 1968 में ओडिशा और मध्य प्रदेश ने बल से ‘धर्म परिवर्तन रोकने के लिए कुछ अधिनियमों को पारित किया था। उड़ीसा के ‘धर्म परिवर्तन विरोधी कानून में अधिकतम दो साल की कारावास और जुर्माना लगाया जाता है।

तमिलनाडु और गुजरात जैसे अन्य राज्यों में भी इसी तरह के कानून पारित हुए हैं, जो भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 295 एवं 298 के तहत अपराध के रूप में इस पर कार्रवाई होती है। इन प्रावधानों के अनुसार जबरदस्ती ‘धर्म परिवर्तन के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को कारावास के साथ दंडित किया जाने का प्रावधान होता है। छत्तीसगढ़ में हमेशा प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ये बात मीडिया में कहते रहते हैं कि कोई भी जबरन किसी का धर्म परिवर्तन नहीं करवा सकता, इसकी शिकायत मिलने पर हम सख्त कार्रवाई करेंगे।

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