मां कर्मा देवी जयंती : माता कर्मा भक्त शिरोमणी सेवा, त्याग, भक्ति समर्पण की देवी हैं। परम् आराध्य साध्वी भक्ति शिरोमणी मां कर्मादेवी देश-विदेश में सर्व साहू तेली समाज की आराध्य देवी कर्माबाई की गौरव गाथा जन-जन के मानस में श्रद्धा भक्ति के भाव से विगत हजारों वर्षो से चली आ रही है। इनका जन्म: संवत् 1073 सन 1017ई0 में पाप मोचनी एकादशी पर हुआ था। इस बार मां कर्मा देवी की जयंती 5 अप्रैल, शुक्रवार को पड़ रही है।
कर्मा देवी जगन्नाथपुरी में समुद्र के किनारे ही रहकर बहुत समय तक अपने आराध्य बालकृष्ण को खिचड़ी का भोग अपने हाथों से खिलाती रहीं और उनकी बाल लीलाओं का आनंद साक्षात मां यशोदा की तरह लेती रहीं।
अतीत में उनकी पावन गाथा तथा उसने सम्बन्धित लोकगीत और किंवदतिया इस बात के प्रमाण है कि मां कर्मा देवी कोई काल्पनिक पात्र नहीं है। मां कर्मादेवी का जन्म उत्तर प्रदेश के झांसी नगर में चैत्र कृष्ण पक्ष के पाप मोचनी एकादशी संवत् 1073 सन् 1017ई0 को प्रसिद्ध व्यापारी श्री राम साहू जी के घर में हुआ था। मां कर्मादेवी बाथरी वंश की थी। श्री राम साहू की बेटी कर्मादेवी से साहू समाज का वंश और छोटी बेटी धर्माबाई से राठौर समाज का वंश चला आ रहा है। इसलिए साहू और राठौर दोनों तैलिकवंशीय समुदाय के वैश्य समाज है।
मां कर्मादेवी का विवाह मध्य प्रदेश के जिला शिवपुरी की तहसील मुख्यालय नरवर के निवासी पद्मा जी साहू के साथ हुआ था। उस समय नरवरगढ़ एक स्वतंत्र जिला था। परम् आराध्य साध्वी भक्ति शिरोमणी मां कर्मादेवी देश-विदेश में सर्व साहू तेली समाज की आराध्य देवी कर्माबाई की गौरव गाथा जन-जन के मानस में श्रद्धा भक्ति के भाव से विगत हजारों वर्षों से चली आ रही है।
बाल्यावस्था से ही कर्मादेवी को धार्मिक कथा-कहानियां सुनने की अधिक रुचि हो गई थी। यह भक्ति भाव मन्द-मन्द गति से बढ़ता गया। कर्मा जी के विवाह योग्य हो जाने पर उसका सम्बंध नरवर ग्राम के प्रतिष्ठित व्यापारी के पुत्र के साथ कर दिया गया। पति सेवा के बाद कर्माबाई को जितना भी समय मिलता था वह समय भगवान श्री कृष्ण के भजन-पूजन ध्यान आदि में लगाती थी। उनके पति पूजा, पाठ, आदि को केवल धार्मिक अंधविश्वास ही कहते थे।
किए भगवान के दर्शन
मां कर्माबाई के जीवन से आत्मबल, निर्भीकता, साहस, पुरूषार्थ, समानता और राष्ट्रभावना की शिक्षा मिलती है। वे अन्याय के आगे कभी झुकी नहीं। उन्होंने संसार के हर दुःख-सुख को स्वीकारा और डट कर उसका मुकाबला किया। गृहस्थ जीवन पूर्ण सम्पन्नता के साथ यापन कर नारी जाति का सम्मान बढ़ाया। अपनी भक्ति से साक्षात् श्रीकृष्ण के दर्शन किए और अपनी गोद में लेकर बालकृष्ण को अपने हाथों खिचड़ी खिलाई।