जगदलपुर, छत्तीसगढ़: छत्तीसगढ़ नक्सल हमला: छत्तीसगढ़ में नक्सलवादी संगठनों के बसे हुए क्षेत्र में सुरक्षा बलों द्वारा चलाए जा रहे नक्सल निवारण अभियान में अब एक निर्णायक युद्ध की दिशा में बदल रहा है। नक्सलवादी संगठन के सबसे शक्तिशाली संगठन, दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी, ने छत्तीसगढ़, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की सीमाओं के क्षेत्र में सुकमा, बीजापुर और दंतेवाड़ा जिलों की सीमा में सुरक्षा बलों द्वारा नक्सल निवारण अभियान को तेजी से बढ़ाया है। अपने प्रयासों से किए जा रहे कड़े प्रतिसाद को देखकर, नक्सल संगठन की चिंता भी अब स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगी है।
पिछले सप्ताह, 16 जनवरी को धर्मावरम कैंप में, 400 से अधिक नक्सलियों ने हमला करते हुए एक हजार से अधिक बैरल ग्रेनेड लांचर दाग करके सुरक्षा बल का ध्यान भटकाने का प्रयास किया था। इसके बाद भी, मंगलवार को, नक्सलियों की सबसे प्रबल लड़ाकू बटालियन नंबर एक के प्रभावशाली क्षेत्र में, जिसका कमांडर एक कुख्यात नक्सली हिड़मा है, सुरक्षा बल ने टेकुलगुड़ेम में एक कैंप स्थापित किया है।
नक्सल प्रभावित कुलगुड़ेम में सुरक्षा बल का कैंप स्थापित
पिछले एक महीने में, नक्सलियों के किले में, सुकमा जिले में पड़िया, मूलेर, सालातोंग के बाद, मुरकराजबेड़ा, दुलेड़, और बीजापुर जिले के डुमरीपालनार, पालनार, मुतवेंडी के बाद, कावड़गांव के अलावा चिंतागुफा में सुरक्षा बल ने कैंपों की श्रृंखला खड़ी कर दी थी, जिसका प्रतिरोध नक्सलियों के ओर से भी पूर्वानुमानित था। इसके बाद भी, टेकुलगुड़ेम में, सुरक्षा बल ने 11वां किला स्थापित कर दिया गया है।
इस अवधि के दौरान, जब सुरक्षा बल ने जोनागुड़ा-अलीगुड़ा क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति को बनाए रखने का प्रयास किया, मुठभेड़ में तीन जवानों ने वीरगति प्राप्त की। 14 जवानों को घायल हो गया है, लेकिन उन्हें सुरक्षित कर लिया गया है। टेकुलगुड़ेम में, सुरक्षा बल की दूसरी बार हिड़मा की बटालियन ने एक महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ी है। इससे पहले, तीन अप्रैल 2023 को, जब सुरक्षा बल ने यहां प्रवेश किया था, 23 जवान बलिदान कर गए थे।
नक्सली प्रभाव से पिछड़ा टेकुलगुड़ेम
सुरक्षा बल के एक अधिकारी ने बताया कि नक्सलियों के प्रभाव के कारण पिछले 40 वर्षों से टेकुलगुड़ेम क्षेत्र का विकास ठहरा हुआ है। इस क्षेत्र से चार किमी दूर पूर्वार्ती नक्सल कमांडर हिड़मा का गाँव है। इस कारण, टेकुलगुड़ेम सहित आसपास के कई गाँवों में सड़क, बिजली, स्कूल, और अस्पताल जैसी सुविधाएं नहीं हैं। अधिकांश ग्रामीणों को नक्सलियों के दबाव में संगठन में शामिल होने का मजबूर किया जा रहा है। बचपन से ही बच्चों को नक्सलवाद का प्रचार-प्रसार कर, उन्हें भ्रांति में डालकर संगठन में भर्ती कर लिया जाता है। इस क्षेत्र से दो सौ से अधिक नक्सली संगठन में शामिल हो चुके हैं, जिससे सुरक्षा बल के लिए यह क्षेत्र एक बड़ी चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है।
कुख्यात हिड़मा को संगठन में मिली बड़ी जिम्मेदारी
नक्सलियों के सबसे शक्तिशाली गढ़ में, सुरक्षा बल के सामने कुख्यात नक्सली हिड़मा से पार पाने का सामना कर रहा है। सूत्रों के मुताबिक, दो महीने पहले संगठन ने इस प्रमुख नक्सली को केंद्रीय समिति में शामिल करते हुए एक बड़े पद पर नियुक्त किया है। सुरक्षा बल के एक अधिकारी ने बताया कि हिड़मा ने 1996-97 में अपनी 17 वर्ष की आयु में नक्सल संगठन में शामिल हो गया था। एक खेती-किसान के रूप में शुरू हुए हिड़मा ने संगठन में सामिल होने के बाद कई हमलों का मास्टरमाइंड बना लिया है।
वर्ष 2001-2002 के आस-पास, हिड़मा को दक्षिण बस्तर ज़िला प्लाटून में नियुक्त किया गया, जिसके बाद उन्होंने लड़ाकू दस्ते पीएलजीए (पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी) में शामिल हो लिया। मार्च 2007 में उरपलमेट्टा क्षेत्र में नक्सल हमले में सीआरपीएफ के 24 जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी, और कहा जाता है कि उस समय पहली बार हिड़मा ने हमले का नेतृत्व किया था। 2008-09 के दौरान, हिड़मा ने पहली बटालियन का कमांडर बनाया था। वर्ष 2011 में, हिड़मा को दंडकारण्य स्पेशल ज़ोन कमेटी के सदस्य में शामिल किया गया था।