रायपुर। शिक्षक दिवस के मौके पर, आइएएस अलंग ने बताया कि उनके जीवन में शिक्षकों का विशेष महत्व और योगदान रहा है। उनके माता-पिता खुद शिक्षक रहे हैं, इसलिए उन्होंने शिक्षा के प्रति अलग ध्यान दिया। स्कूल से लेकर कॉलेज तक, सभी शिक्षकों का उनके जीवन में महत्वपूर्ण योगदान था। वे आज जो भी हैं, उसमें सभी शिक्षकों का महत्वपूर्ण योगदान है।
शिक्षक दिवस के इस खास मौके पर उन्होंने कहा कि उनके जीवन में इतने अध्यापक हुए हैं कि उनकी गणना और उनके योगदान को कहना संभव नहीं है। किसी भी छात्र का सफलता शिक्षक के बिना सम्भाव नहीं है। शिक्षक एक ऐसा मार्गदर्शक होते हैं, जिनका एक ही उद्देश्य होता है – उनके शिक्षित छात्र को सफल बनाना, क्योंकि उनकी सफलता में उनका भी योगदान होता है। ऐसे में, हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि शिक्षकों का महत्व अत्यधिक होता है।\
रायपुर के कलेक्टर, डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे, आइएएस, अपने जीवन में अपने पिता, नरेंद्र भुरे, को सबसे महत्वपूर्ण शिक्षक मानते हैं। उनके पिता भी पहले एक शिक्षक थे और अब वे सेवानिवृत्त हो चुके हैं। उनके पिता का योगदान उनके पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन में अद्वितीय था, और वे अपने काम में सजग और ईमानदार थे। उन्होंने अपनी शिक्षा के लिए रोजाना 75 किमी से भी ज्यादा की यात्रा की और डॉक्टर बनने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने पढ़ाई के लिए ऐसा माहौल बनाया कि किसी भी प्रकार की परेशानी न हो। आज जो कुछ भी है, वह सिर्फ और सिर्फ उनके पिता के योगदान का परिणाम है, और उन्होंने अपनी सफलता का सम्पूर्ण श्रेय उन्हें दिया है। इसके अलावा, उन्हें अपनी आगे की पढ़ाई के दौरान भी कई उत्तम शिक्षक मिले, जिन्होंने उन्हें पढ़ाई में हमेशा मदद की और आज वे इस उच्चाधिकारी पद पर पहुंचे हैं।
रायपुर के सब एसएसपी, प्रशांत, स्वयं कहते हैं कि वह सूरजपुर भैयाथान के निवासी हैं। उनके गांव में प्राइमरी स्कूल के समय, भैयाथान क्षेत्र में कोई विशेष सुविधाएँ नहीं थीं। एक ही निजी स्कूल था, और सभी वहीं पढ़ाई करते थे। वहाँ के शिक्षक और स्कूल के प्रबंधक, उमाशंकर मिश्रा, हमेशा प्रोत्साहित करते थे। जब वह पांचवीं कक्षा में थे, तब वे नवोदय विद्यालय के प्रवेश की तैयारी कर रहे थे। नवोदय की तैयारी के लिए उन्होंने उसी निजी स्कूल के शिक्षक, उमाशंकर मिश्रा, से मदद ली। उन्होंने किसी भी प्रकार की आवश्यकता के बजाय, उनसे कोई भी पैसे नहीं लिए। 12 बच्चे स्कूल में पढ़ रहे थे, और इनमें से पांच को नवोदय में चयन हुआ। इसके बाद, उनका रास्ता तय हो गया और वे अपने उद्देश्य की ओर बढ़ते चले गए। आज भी, आइपीएस प्रशांत अग्रवाल, शिक्षक उमाशंकर के संपर्क में बने हैं।