रायपुर: 2023 में आयोजित होने वाले छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में बिगुल बज चुका है। राजनीतिक दल, सम्मेलनों के साथ-साथ, उम्मीदवारों के चयन के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण प्रतियोगिता दिख रही है। भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यों पर बल देती हुई नजर आ रही है, वहीं कांग्रेस भूपेश सरकार की योजनाओं पर भरोसा दिखा रही है। प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में पांच प्रमुख मुद्दों के आस-पास घूमता दिखेगा। राज्य के गठन के बाद यह पहली बार है जब भगवान श्रीराम चुनावी मुद्दे के रूप में उभरेंगे।
छत्तीसगढ़ के स्थानीय लोगों की भावनाओं को उद्बोधित करते हुए, राजनीतिक दल छत्तीसगढ़ की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। टिकट वितरण से लेकर अन्य मोर्चों पर इसकी प्रतिष्ठा दिखाई देने लगी है। 50 फीसदी ओबीसी वोटर्स वाले राज्य में आरक्षण एक रणनीतिक चुनावी मुद्दा के रूप में उभरा है। प्रदेश में आरक्षण के मुद्दे पर सरकार और राजभवन के बीच पिछले आठ महीने से सार्वजनिक विवाद चल रहा है।
कांग्रेस और भाजपा, दोनों ही एक दूसरे को आरक्षण के मुद्दे पर घेर रहे हैं। प्रदेश में शराबबंदी के वादों ने कांग्रेस को महत्वपूर्ण जीत दिलाई है। अब फिर, आगामी चुनाव के बारे में निर्णय लेने की प्रक्रिया अवश्यक हो रही है, लेकिन शराबबंदी पर अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है। इस संदर्भ में, विपक्षी दल सरकार को घेरने के उद्देश्य से शराबबंदी को एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना रहे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ विपक्ष की आलोचनाएँ और सत्ता पक्ष के जवाब के बीच, मतदाता अब भी उपेक्षा कर रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में आयोजित सभा के साथ भाजपा के चुनावी बिगुल को बजाया, और उसमें सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा भ्रष्टाचार को उजागर किया। प्रधानमंत्री ने शराब घोटाले, कोयला घोटाले जैसे अन्य घोटालों पर राज्य सरकार को आलोचना की। भाजपा के नेताओं को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार को घेरने और संघर्ष करने का संदेश दिया।
इसके विपरीत, कांग्रेस इन घोटालों को भाजपा के संरक्षित साथियों द्वारा प्रायोजित बताकर उनकी वायु में खेलने की रणनीति में व्यस्त है। कांग्रेस निरंतर यह संदेश प्रसारित कर रही है कि केंद्रीय जांच एजेंसियाँ यानी ईडी और आइटी भाजपा की सहायक संगठन के रूप में सक्रिय हैं। इन भ्रष्टाचार संदेशों पर मतदाताओं की अब तक स्पष्ट राय नहीं है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, आने वाले एक महीने में मतदाता खुलकर भ्रष्टाचार पर अपनी राय रख सकते हैं, हालांकि वे अभी भी पूरी घटनाक्रम को समझने में जुटे हैं।
राम रथ की सवारी, किस पर पड़ेगी भारी
पौने पांच वर्ष पहले, जब कांग्रेस ने सत्ता में आकर और मुख्यमंत्री के पद पर भूपेश बघेल ने शपथ ली, उस समय किसी ने यह सोचना भी नहीं सोचा होगा कि कांग्रेस राम नाम के मुद्दे को भाजपा की हाथ से छीन लेगी। अब तक, अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर का मुद्दा भाजपा का पसंदीदा मुद्दा रहा है। वर्ष 2017 में, रायपुर में स्थापित हुए भव्य राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी शामिल थे।
तौरंत, अब कांग्रेस सरकार ने छत्तीसगढ़ को भगवान श्रीराम के प्रतिष्ठित स्थल के रूप में स्थापित किया है। श्रीराम वनवास पथ की योजना बनाई गई है, जिसमें नौ प्रमुख स्थलों पर 50 फीट की ऊँचाई में भगवान श्रीराम की प्रतिमाएँ स्थापित की जा रही हैं। रायपुर से 25 किलोमीटर दूर चंदखुरी में माता कौशल्या के प्राचीन मंदिर को भी महानता से सजाया गया है। कांग्रेस ने इस प्रयास में कोई कसर नहीं छोड़ी है कि भाजपा की 15 साल की सत्ता काल में इस दिशा में कोई विशेष पहल नहीं की गई। आगामी चुनाव में कांग्रेस, जहां भगवान श्रीराम के समर्थन में दिख रही है, वहीं भाजपा इसका उत्तराधिकारी बनने की कोशिश कर रही है।
छत्तीसगढ़ियावाद की सियासी संजीवनी
प्रदेश में कांग्रेस सरकार के आगमन के बाद, छत्तीसगढ़ी आंदोलन की शक्ति में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। कांग्रेस सरकार ने तीज-त्योहारों से लेकर हर क्षेत्र में छत्तीसगढ़ी आंदोलन को महत्वपूर्ण ध्यान देने का प्रयास किया है। यहाँ तक कि छत्तीसगढ़ी जनता का नारा “छत्तीसगढ़ी सबले बढ़िया” अब कांग्रेस और भाजपा के चुनावी समारोहों में सुनाई दे रहा है। गेड़ी से लेकर बोरे-बासी, इस चुनाव में यह चर्चा का मुद्दा बन चुका है। कांग्रेस और भाजपा के नेताओं के बीच गेड़ी चैलेंज ने मतदाताओं में एक नए उत्साह की भावना को उत्पन्न किया है।
हरेली से लेकर रोका छेका तक, कांग्रेस ने पिछले चार सालों से अपने पक्ष में प्रयास किए हैं। स्थानीय सरकार ने प्रदेश के हर जिले में छत्तीसगढ़ महतारी की मूर्तियों की स्थापना की घोषणा की है। इसके बाद, प्रदेश में प्रधानमंत्री मोदी की पहली सभा में छत्तीसगढ़ महतारी की तस्वीर मुख्य मंच पर प्रकट हुई। अब चुनाव के परिणाम में यह सामने आएगा कि छत्तीसगढ़िया ने किसके पक्ष में अपनी समर्थन दिशा बदली है, यह आने वाले समय में ही प्रकट होगा।
यह है प्रमुख चुनावी मुद्दा
धान: धान के कटोरों में, कांग्रेस और भाजपा, दोनों प्रमुख दल, अपनी राजनीतिक रणनीति को धार देने की प्रयासरत हैं। देश में सबसे अधिक दाम पर धान खरीदने वाले राज्य छत्तीसगढ़ है। कांग्रेस इस विशेषता को सिर्फ छत्तीसगढ़ की नहीं, बल्कि देश के अन्य चुनावी राज्यों में भी प्रमोट कर रही है। इस बार सरकार ने प्रति एकड़ 20 क्विंटल धान खरीदने की घोषणा की है।
किसान: देश में सबसे महत्वपूर्ण वोट बैंक किसान होते हैं। कांग्रेस सरकार ने न्याय योजना के माध्यम से किसानों और कृषि मजदूरों की आर्थिक स्थिति में सुधार करने का प्रयास किया है। भाजपा इसे समर्थन देती है, हालांकि उनके केंद्रीय नेताओं ने इसे मुफ्त की रेवड़ी करने का आरोप लगाया है। आने वाले चुनाव में, न्याय योजना और चुनावी रेवड़ी के बीच मुद्दे पर तीव्र आकर्षण है।
युवा: प्रदेश में लगभग 40 प्रतिशत वोटर युवा पीढ़ी से संबंधित हैं। सरकार ने बेरोजगारों की समस्या का समाधान करने के उद्देश्य से एक लाख से अधिक युवाओं को वृत्ति भत्ता प्रदान करने का प्रयास किया है, और यह अभियान चुनावी वर्ष में आरंभ किया गया है। सरकार ने प्रतियोगी परीक्षा की फीस में समाप्ति की, साथ ही युवाओं के लिए भर्ती प्रक्रिया को भी बदला। इसके परिणामस्वरूप, दोनों प्रमुख दलों ने आधी विधानसभा सीटों पर युवा उम्मीदवारों को प्रत्याशी बनाने की घोषणा की है।
विपक्ष का यह है हथियार
केंद्र सरकार की योजनाओं के प्रभाव के चलते, विपक्ष उसे ताल ठोंक रहा है। चाहे वो जल जीवन मिशन हो या सड़कों के विकास के लिए केंद्रीय फंड, भाजपा अपने चुनावी प्रचार में इन योजनाओं को उजागर कर रही है। राज्य सरकार के कामों के बाद, भाजपा के पास सिर्फ दो ऐसे मुद्दे हैं, जिनका कांग्रेस के पास कोई उत्तर नहीं है। पहला मुद्दा शराबबंदी है, और दूसरा गरीबों के आवास का मुद्दा है। भाजपा हर सभा में शराबबंदी को मुख्य चर्चा बना रही है। प्रधानमंत्री आवास योजना के बारे में भाजपा ने विधानसभा को घेरने का प्रयास किया था, और इसके बाद सरकार ने आवासहीन लोगों की गणना शुरू की है।
सरकार के काम से वापसी की उम्मीद
भूपेश सरकार के प्रशासनिक क्षमता से कांग्रेस को वापसी की आशा हो रही है। राज्य सरकार ने गांवों, गरीबों और मजदूरों के लिए कई उपयोगी योजनाएं प्रस्तुत की है। रीपा के माध्यम से गांवों में नए रोजगार के अवसर पैदा किए गए हैं। गोठान से शुरू करके सरकार ने जैविक खेती को बढ़ावा दिया है। कांग्रेस के प्रचार अभियान में, बेरोजगारी भत्ता से लेकर पिछले चुनाव में किए गए वादों का भी जिक्र किया गया है। कांग्रेस वापसी की उम्मीद में, भूपेश सरकार के काम और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के प्रतिष्ठानुसार चर्चा कर रही है।
चुनाव से नजर आएंगे नए समीकरण
पिछले विधानसभा चुनाव में प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी की जनता ने छत्तीसगढ़ और बसपा के संयुक्त गठबंधन से लगभग 30 विधानसभा सीटों का समीकरण बदल दिया था। भाजपा की मजबूत हार के पीछे इस गठबंधन के उम्मीदवारों को मिले वोट को मुख्य कारक माना जाता है। इस चुनाव में बसपा अकेले चुनाव लड़ने जा रही है, जबकि आम आदमी पार्टी भी प्रदेश की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवारों को उतार रही है।
आदिवासी वोटरों के ध्रुवीकरण को लेकर सर्व आदिवासी समाज के प्रतिनिधि पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम के मार्गदर्शन में एक नई पार्टी की स्थापना की जा रही है, जिससे वे चुनाव में भाग लेने की तैयारी कर रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, मुख्य मुकाबला आने वाले चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच हो सकता है, हालांकि जकांछ, बसपा, आप और सर्व आदिवासी समाज की पार्टियाँ नए समीकरण की स्थापना करने की तैयारी में हैं।