मुख्यमंत्री भूपेश ने अबुझमाड़ क्षेत्र के किसानों को भूमि के अधिकार प्रदान किए: रायपुर। छत्तीसगढ़ के वन्यजीव और आदिवासी, सदियों से इसकी पहचान रहे हैं। राज्य के लगभग आधे भाग पर जंगल हैं, जहाँ छत्तीसगढ़ की प्रतिष्ठित आदिम संस्कृति की खिलती-फूलती है। पिछले कुछ वर्षों में, छत्तीसगढ़ में आदिवासी क्षेत्रों के पूरे विकास और सामाजिक सुधार को विशेष महत्व दिया गया है। इससे राज्य के आदिवासी आवासीय क्षेत्रों में नए विकास की एक नयी प्रेरणा पैदा हुई है। छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत करने के उद्देश्य से, राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव जैसे महत्वपूर्ण आयोजनों की शुरुआत की गई है।
छत्तीसगढ़ के आदिवासियों को मिली बड़ी सौगात
विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ की आदिवासी समुदाय को विशेष उपहार प्रदान किया है। भूपेश सरकार ने आदिवासी संस्कृति के संरक्षण और संरक्षण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। छत्तीसगढ़ में सीएम भूपेश के प्रशासन में, आदिवासी समुदाय के सशक्तिकरण के लिए विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए कई कार्य किए गए हैं। भूपेश सरकार ने पेसा कानून को पूरी तरह से क्रियान्वित करने के लिए नियम बनाए हैं। जल, जंगल, और जमीन के संरक्षण के लिए प्रदेश के आदिवासी लोगों को वो सभी सुविधाएँ प्रदान की गई हैं, जिनकी उनको आवश्यकता थी।
पहले राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का पहला संस्करण 2019 में आयोजित किया गया था, दूसरा संस्करण 2021 में आयोजित हुआ और इसका तीसरा संस्करण 2022 में आयोजित किया गया। देवगुड़ियां (आदिवासी समुदाय का पूजा स्थल) और घोटुलों (आदिवासी समुदाय का सांस्कृतिक मिलन स्थल) की सुरक्षा और संरक्षण के लिए राज्य सरकार ने प्रयास किए हैं, जिससे आदिम जीवन मूल्यों की संरक्षा और संवर्धन हो सके। वर्तमान में, देवगुड़ी और घोटुल के निर्माण के लिए 5 लाख रुपए तक की राशि प्रदान की गई है। सरकार ने आदिवासी समुदाय के तीज-त्योहारों, संस्कृति और परंपराओं की सुरक्षा के उद्देश्य से मुख्यमंत्री आदिवासी परब सम्मान निधि योजना की शुरुआत की है। इस योजना के अंतर्गत मेला, मड़ई, जात्रा त्योहार, सरना पूजा, देव गुड़ी, छेरछेरा, अक्ती, नवाखाई और हरेली जैसे विभिन्न त्योहार शामिल हैं। इन त्योहारों के लिए योजना के तहत 10 हजार रुपए का अनुदान प्रदान किया जाता है।
अबूझमाड़ क्षेत्र के किसानों को मिली जमीनी अधिकार
भूपेश सरकार की नीतियों के परिणामस्वरूप, वन्यजीवी क्षेत्र में निवास करने वाले लोगों के जीवन में तेजी से बदलाव आने लगा है। सरकार ने आदिवासी समुदाय की आवश्यकताओं और आशाओं को मध्यस्थ रखते हुए कई नई योजनाएं बनाई हैं। इस प्रकार की नीतियों की शुरुआत लोहंडीगुड़ा क्षेत्र के किसानों के जमीन की वापसी से हुई है। बस्तर के लोहंडीगुड़ा क्षेत्र के 10 गांवों में एक निजी इस्पात संयंत्र के लिए 1707 किसानों से अधिग्रहित 4200 एकड़ जमीन को वापस किया गया है। इससे यहां के निवासियों को कृषि के लिए भूमि पट्टों की प्रदान की जा सकेगी। नए उद्योगों की स्थापना की जा सकेगी। आजादी के बाद पहली बार अबूझमाड़ क्षेत्र के 2500 किसानों को मसाहती खसरा दिया गया है।
लघु वनोपजों के समर्थन मूल्य पर संग्रहण
सीएम भूपेश बघेल के प्रति विशेष प्रेरणा से, वन्यजीव क्षेत्र में गतिविधियों में तेजी से बदलाव लाने के लिए छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने एक उपलब्धि प्राप्त की है। उन्होंने तेंदूपत्ता संग्रहण दर को प्रति मानक बोरा को 2500 रुपए से बढ़ाकर 4000 रुपए किया है और 67 प्रकार की लघु वनोपजों की समर्थन मूल्यों के साथ उनका संग्रहण, मूल्यांकन और विपणन का प्रबंधन किया गया है। राज्य सरकार की आँकड़ों के अनुसार, 2018-19 से लेकर 2022-23 के दौरान राज्य में 12 लाख 71 हजार 565 क्विंटल लघु वनोपजों की समर्थन मूल्य पर खरीदारी की गई, जिसका कुल मूल्य 345 करोड़ रुपये है। छत्तीसगढ़ राज्य वनोपजों के संग्रहण में सबसे अधिक पारिश्रमिक देने वाला राज्य है।
पेसा कानून से आदिवासियों को मिलेगी बड़ी राहत
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अबुझमाद क्षेत्र के किसानों को भूमि के अधिकार प्रदान किए: छत्तीसगढ़ सरकार ने पेसा कानून के नियमों के प्रायास को महत्वपूर्णता दी है। पेसा कानून के नियमों के अदोपांदन से इसका प्रयोगविधि में सुधार होगा। यह आदिवासी समुदाय के लोगों में आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन की भावना को प्रोत्साहित करेगा। ग्राम सभा का प्रशासनिक अधिकार मजबूत होगा। ग्राम सभा के 25 प्रतिशत सदस्य आदिवासी समुदाय से संबंधित होंगे, और इस 50 प्रतिशत के अंदर, एक चौथाई सदस्य महिला होंगे। ग्राम सभा का अध्यक्ष भी आदिवासी होगा। पुरुष और महिला अध्यक्षों को एक-एक वर्ष की अवधि में नेतृत्व का अवसर मिलेगा। गांव के विकास के निर्णय और सामंजस्यिक विवादों के समाधान का अधिकार भी उन्हें होगा। यहां तक कि पेसा कानून पहले से ही अस्तित्व में था, लेकिन इसके नियम बनाने के कारण उसका उपयोग आदिवासियों को उचित रूप से नहीं हो पा रहा था, अब नियम बन जाने से उन्हें अपने जल-जंगल-जमीन के मामले में स्वयं निर्णय लेने का अवसर मिलेगा।